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नारायण-नारद संवाद : मां गंगा जल स्वरूप में कैसे आयीं? क्या आप जानते हैं? यदि नहीं, तो जान लीजिए 

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Narayan-Narada dialogue: How did Mother Ganga come in the form of water? Do you know? If not, then know, dharm, religious, Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, dharm adhyatm : गंगा जलरूप में कैसे आयीं ? नारदजी ने पूछा, “भगवन् ! भूमण्डल को पवित्र करनेवाली त्रिप्रयाग गंगा कहां से प्रकट हुईं ; अर्थात् इनका जन्म और आविर्भाव कैसे हुआ? नारायण जी बोले, “एक समय की बात है, कार्तिक मास की पूर्णिमा थी। भगवान श्रीकृष्ण रासमंडल में थे। इतने में ब्रह्मा की प्रेरणा से प्रेरित होकर उल्लास को बढ़ानेवाले, पछताने लगे। जिसके प्रत्येक शब्द में उल्लास बढ़ाने की शक्ति भरी थी। उसे सुन कर सभी गोप, गोपी और देवता मुग्ध होकर मूर्च्छित हो गये। जब किसी प्रकार से उन्हें चेत हआ, तो उन्होंने देखा कि समस्त रासमंडल का पूरा स्थल जल से भरा हुआ है। श्रीकृष्ण और राधा का कहीं पता नहीं है ; फिर तो गोप, गोपी, देवता और ब्राह्मण ; सभी अत्यन्त उच्च स्वर से विलाप करने लगे।

ठीक उसी समय बड़े मधुर शब्दों में आकाशवाणी हुई, “मैं सर्वात्मा कृष्ण और मेरी स्वरूपा शक्ति राधा। हम दोनों ने ही भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए यह जलमय विग्रह धारण कर लिया है। तुम्हें मेरे तथा इन राधा के शरीर से क्या प्रयोजन ? इस प्रकार पूर्ण ब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण ही जलरूप होकर गंगा बन गये थे। गोलोक में प्रकट होनेवाली गंगा के रूप में राधा-कृष्ण प्रकट हुए हैं। राधा और कृष्ण के अंग से प्रकट हुईं गंगा भक्ति व मुक्ति ; दोनों देनेवाली हैं। इन आदरणीय गंगा देवी को सम्पूर्ण विश्व के लोग पूजते हैं।

गंगा कहां जायेंगी ? तब नारद जी ने पूछा, “कलियुग के पांच हजार वर्ष बीत जाने पर गंगा को कहां जाना होगा ?” भगवान नारायण ने कहा, “हे नारद ! सरस्वती के शाप से गंगा भारतवर्ष में आयीं, शाप की अवधि पूरी हो जाने पर वह पुनः भगवान श्रीहरि की आज्ञा से बैकुण्ठ चली जायेंगी। ये गंगा, सरस्वती और लक्ष्मी श्रीहरि की पत्नियां हैं। लक्ष्मी ही तुलसी के रूप में पृथ्वी पर पर आयीं। इस प्रकार से तुलसी सहित चार पत्नियां वेदों में प्रसिद्ध हैं।

हरिद्वार की कथा 

हरिद्वार उत्तराखण्ड राज्य, जो समुद्रतट से लगभग एक हजार फुट की ऊंचाई पर हिमालय पर्वत की शिवालिक नामक पर्वत श्रेणी की तराई में परम पुनीत गंगा नदी के दाहिने तट पर बसा हुआ है ; हिमालय पर्वत पर उद्गम स्थान गंगोत्री से निकलने के पश्चात गंगा का दर्शन सर्वप्रथम इसी स्थान पर होता है, इसलिए इसे गंगाद्वार भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न कारणों से इस स्थान के कुछ नाम और भी हैं। जैसे श्री शिवजी के परम धाम पंचकेदार के दर्शन के लिए शैव्य लोक इसी मार्ग से जाते हैं। अतः यह शिव जी के नाम पर होने के कारण इसे हरिद्वार के नाम से पुकारते हैं। पवित्र देवभूमि उत्तराखण्ड को स्वर्ग की उपमा दी जाती है, क्योंकि यह देवताओं का विहार स्थल एवं तपस्वी ऋषि-मुनियों का साधना स्थल है। इसलिए इसे स्वर्गद्वार भी कहा जाता है। इस स्थल का नाम हरिद्वार इसलिए भी पड़ा है, क्योंकि बद्रीनारायण की यात्रा का आरम्भ इसी स्थान से किया जाता है। अतः उनके हरि नाम के कारण लोग इसे हरिद्वार कहते हैं।

कनखल दक्ष प्रजापति की कथा

जब सृष्टि का आरम्भ काल था, उसी समय कनखल में राजा दक्ष प्रजापति की राजधानी थी। दक्ष की पुत्री सती शिवजी को व्याही गयी थी, परन्नु ईर्ष्यावश दक्ष शिवजी से शत्रुता रखते थे। अतः एक बार जब उन्होंने यज्ञ किया, तो सभी देवताओं को बुलाया ; केवल शिव-सती को आमंत्रित नहीं किया। उस समय सती जी बिना निमंत्रण मिले ही शिवजी से हठ करके पिता दक्ष के घर चली गयीं, परन्तु जब वहां दक्ष ने उनका ठीक से सम्मान नहीं किया, तो वह क्रुध होकर उसी यज्ञकुण्ड में भस्म हो गयीं।

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