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NCERT की बुद्धि की बलिहारी : दसवीं कक्षा के विज्ञान सिलेबस से डार्विन के सिद्धांत को हटाया, देश के 1800 से ज्यादा वैज्ञानिकों और शिक्षकों ने…

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National News Update, Delhi, NCERT, Biology Syllabus, Darwin Principle Deleted : हम पिछले 9 वर्षों से लगातार सुन रहे हैं कि पिछले 70 वर्षों में जो नहीं हुआ, उसे 9 वर्षों में कर दिया गया। अब भारत ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विश्व गुरु बनने के करीब पहुंच गया है। वास्तव में गाल बजाना और सच्चाई को समझना दोनों में बड़ा फर्क है। मीडिया से जानकारी मिल रही है कि एनसीईआरटी ने कक्षा 10 के बायोलॉजी यानी जीव विज्ञान के सिलेबस से चार्ल्स डार्विन की एवोल्यूशन थ्योरी का अध्याय हटा दिया है। देशभर के 18 सौ से अधिक वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों ने इस पर अपना विरोध जताया है।

क्या है थ्योरी ऑफ एवोल्यूशन

बता दें कि चार्ल्स डार्विन बीसवीं शताब्दी में दुनिया के महानतम जीव वैज्ञानिकों में एक थे। उनके दादा इरासमस डार्विन भी वैज्ञानिक ही थे। डार्विन ने थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन की खोज की है। इसमें स्ट्रगल फॉर एक्जिस्टेंस और नेचुरल सिलेक्शन को विस्तार से तार्किक और वैज्ञानिक तथ्यों के साथ समझाया गया है। इसके माध्यम से पूरी दुनिया के बच्चों को पढ़ाया जाता है कि कैसे मनुष्य वानरों की कुछ प्रजातियों से विकसित हुआ है। पुस्तकों से इस सिद्धांत को हटा देने पर भारतीय छात्र विज्ञान की इस मौलिक खोज से वंचित रह रह जाएंगे। एनसीईआरटी की पुस्तकों से उनकी एवोल्यूशन थ्योरी पूरी तरह वाईफाई तौर पर हटाने का निर्णय लिया जा चुका है। 

वैज्ञानिकों ने एनसीईआरटी को लिखा पत्र

बड़ी संख्या में देशभर के शिक्षाविदों एवं वैज्ञानिकों ने इसका विरोध किया है। पूरे भारत से 1,800 से भी अधिक वैज्ञानिकों, शिक्षकों और विज्ञान से जुड़े लोगों ने पाठ्य पुस्तकों से डार्विन के सिद्धांतों को हटाने की निंदा करते हुए एनसीईआरटी को इस संबंध में एक पत्र लिखा है। पत्र में डार्विन की थ्योरी को फिर से पाठ्य पुस्तकों में शामिल करने की मांग रखी गई है। ब्रेकथ्रू साइंस सोसाइटी के अंतर्गत देशभर के 18 सौ से अधिक वैज्ञानिकों व शिक्षकों ने कक्षा 9 और 10 की पाठ्यपुस्तकों से डार्विन के विकास के सिद्धांत को हटाने के लिए एनसीईआरटी की निंदा की है और एक खुले पत्र पर हस्ताक्षर करके उसे ही एनसीईआरटी को भेजा है। ब्रेकथ्रू साइंस सोसाइटी ने एक बयान भी जारी किया है, जिसमें इस पर भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएसईआर), टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जैसे बड़े वैज्ञानिक संस्थानों के प्रतिनिधियों द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं।

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