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बुढ़ापे का सहारा : तेजी से आगे बढ़ रही ओल्ड पेंशन स्कीम की हवा, जानिए क्यों जरूरी है हर नागरिक के लिए पेंशन…

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Life needs basic support in old age. Pension fulfills this need. बुढ़ापे में जिंदगी को चलाने के लिए कुछ आधारभूत आवश्यकता पड़ती है। बुढ़ापा अपने आप में अशक्तता की एक बीमारी समझी जाती है। इस अवस्था में गैर तो क्या अपने भी साथ छोड़ जाते हैं। अपनी संतानें भी नहीं पूछती हैं। इसलिए ले-देकर एक ही सहारा बच जाता है और वह है पेंशन (Pension)। आज के दौर में यह समझना सही नहीं है कि सरकारी अथवा गैर सरकारी क्षेत्रों में नौकरी करने वाले लोगों को ही बुढ़ापे में पेंशन की जरूरत होती है। वास्तव में अब पेंशन सिस्टम को व्यापक धरातल पर उतारकर इस रूप में देखा जाना चाहिए कि भारत के हर नागरिक को इसकी व्यवस्था एक सीमा के भीतर कैसे की जा सकती है। किसी को बहुत ज्यादा पेंशन देना भी सही नहीं है और ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि अगर किसी नागरिक ने नौकरी नहीं की है तो उसे बुढ़ापे में पेंशन के सहारे की जरूरत नहीं है। हर किसान, मजदूर और अन्य छोटे-छोटे व्यवसायों से जुड़े सभी नागरिकों को बुढ़ापे में पेंशन की जरूरत है। सच्चाई यह है कि प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोग जब रिटायर करते हैं तो उन्हें आज भी न के बराबर पेंशन मिलती है। इन लोगों में सभी तरह के पत्रकार भी शामिल हैं। समन्वित रूप से यह सोचने की जरूरत है कि देश में किसी को भी ₹50000 से अधिक और ₹10000 से कम पेंशन नहीं मिलनी चाहिए।

Pension में बड़ा अंतर गैरवाजिब

देश की आजादी के बाद शुरू से ही इसी बात को ध्यान में रखकर बेहतर पेंशन स्कीम को लागू किया गया था। यह नहीं भूलना चाहिए कि सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को ही पेंशन मिलना जरूरी है। सेवा करने वाले कर्मचारी चाहे सरकारी क्षेत्र के हों अथवा प्राइवेट क्षेत्र के, महत्व सबका एक जैसा है। इसलिए पेंशन की व्यवस्था भी सबके लिए थोड़ा बहुत अंतर के साथ एक रूप में ही होना चाहिए, लेकिन शुरू से ही इस व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया गया। नतीजा यह हुआ कि सरकारी क्षेत्र के कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद किसी तरह की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा, जबकि प्राइवेट क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को रिटायरमेंट के बाद इतनी कम राशि पेंशन के रूप में मिली कि उससे उनका किसी रूप में गुजारा नहीं हो सकता है। आज भी यही स्थिति प्राइवेट सेक्टर में मौजूद है। सरकारी क्षेत्र में भी 2010 में पुरानी पेंशन व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया था। आज फिर से पुरानी व्यवस्था को लागू करने की मांग व्यापक स्तर पर हो रही है। प्राइवेट सेक्टर में भी ऐसी मांग उठ रही है, लेकिन वह आगे नहीं बढ़ पा रही है, क्योंकि इस पर निर्णय केंद्र सरकार ही ले सकती है।

OPS पर दिख रही गंभीरता

सरकारी क्षेत्र में साल 2022 में पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने के प्रति गंभीरता दिख रही है। सबसे पहले इस साल के बजट में राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने अपने बजट में पुराने पेंशन सिस्टम को लागू करने की घोषणा की है। देखना है कि यह कब तक कार्यान्वित हो पाता है। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने भी इस सिस्टम को लागू करने का वादा किया है और कहा है कि इसका अध्ययन किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने भी ऐसा करने का वादा किया है। अभी तक किसी भी भाजपा शासित राज्य सरकार ने पुरानी पेंशन सिस्टम को लागू करने के प्रति कोई रुचि नहीं दिखाई है। अभी हाल में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणापत्र में पुराने पेंशन सिस्टम को लागू करने का वादा किया था। धीरे-धीरे यह देखने को मिल रहा है कि पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने की हवा सभी राज्यों में फैलनी शुरू हो गई है। हाल की जानकारी के मुताबिक,गुजरात में भी कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करने की पुरजोर मांग की है।

गुजरात में उठी पुरजोर मांग

शिक्षा, स्वास्थ्य, पंचायत, राजस्व आदि विभागों के कर्मचारियों ने इसके लिए एक दर्जन से अधिक शहरों में काली पट्टी बांधकर विरोध किया तथा पुरानी पेंशन योजना की मांग की। गुजरात कर्मचारी महासंघ ने गांधीनगर में तथा विविध विभाग व कर्मचारी संगठनों ने अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, वडोदरा, वलसाड, जामनगर, भरुच, भावनगर आदि शहरों व कई कस्‍बों में हाथों में बैनर व तख्तियां लेकर सांकेतिक प्रदर्शन कर सरकार से राज्य में पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग रखी। कर्मचारियों के साथ पेंशनकर्मियों हाथों पर काली पट्टी बांधकर गुजरात सरकार के हाल के नियमों का विरोध किया तथा राज्य में पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग रखी। राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा के बाद से गुजरात के कर्मचारी व पेंशन कर्मी भी सरकार से इस मांग को पूरी करने का दबाव बना रहे हैं।

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