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Ramayan : शूर्पनखा का माता सीता पर आक्रमण 

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हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता…धरा से निकल कर धरा में समाने तक हैं माता सीता के अनेक प्रेरक दृष्टांत ! (3) 

Surpanakha’s attack on Mother Sita, Mother Sita, surpanakha, Ramayan, dharm, religious, Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, dharm adhyatm : जब वह पंचवटी के वनों में कुटिया बना कर रह रही थी, तब एक दिन वहां रावण की बहन शूर्पनखा का आगमन हुआ। उसने माता सीता के सामने ही श्रीराम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तथा सीता को भला बुरा कहने लगी, लेकिन माता सीता चुप रहीं। जब श्रीराम व लक्ष्मण ; दोनों ने उसके द्वारा दिये गये विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया, तो वह माता सीता पर आक्रमण करने के लिए दौड़ी। यह देख कर लक्ष्मण ने शूर्पनखा पर तलवार से वार किया तथा उसकी नाक व एक कान काट दिया।

माता सीता का हरण 

शूर्पनखा की नाक काटने के कुछ दिनों के पश्चात माता सीता को अपनी कुटिया के बाहर एक स्वर्ण मृग दिखाई पड़ा। वह देख कर उनका मन आनंदित हो उठा तथा उन्होंने श्रीराम से वह मृग उन्हें लाकर देने की हठ की। श्रीराम वह मृग लेने चले गये। लेकिन, कुछ समय के पश्चात उनकी लक्ष्मण-लक्ष्मण चिल्लाने की आवाज़ आयी।

यह देख कर माता सीता भयभीत हो गयीं तथा उन्होंने लक्ष्मण को अपने भाई की रक्षा करने के लिए भेजा। लक्ष्मण ने माता सीता की सुरक्षा के लिए लक्ष्मण रेखा का निर्माण किया तथा उनके वहां आने तक इसे पार ना करने को कहा।

लक्ष्मण के जाने के बाद वहां एक साधु आया और उनसे भिक्षा मांगने लगा। माता सीता ने उन्हें उसी रेखा के उस पार से भिक्षा लेने को कहा, जिस पर वह साधु क्रोधित हो गया तथा उन्हें श्राप देने लगा। श्राप के भय से माता सीता ने लक्ष्मण रेखा को पार कर दिया व साधु को भिक्षा देने लक्ष्मण रेखा से बाहर आ गयीं।

साधु राक्षस के रूप में बदल गया

माता सीता के बाहर आते ही वह साधु एक राक्षस में बदल गया, जो कि लंका का राजा रावण था। वह माता सीता को पुष्पक विमान में बिठा कर लंका ले जाने लगा। बीच में माता सीता को बचाने के लिए जटायु पक्षी आये, लेकिन रावण ने उनका वध कर दिया।

तब माता सीता पुष्पक विमान से अपने आभूषण उतार कर नीचे फेंकती रहीं, ताकि श्रीराम को उन्हें ढूंढने में परेशानी ना हो। रावण ने उन्हें ले जाकर अशोक वाटिका में त्रिजटा के संरक्षण में रख दिया। रावण द्वारा माता सीता के हरण के दो कारण थे। पहला अपनी बहन शूर्पनखा द्वारा बताये गये सीता के रूप के कारण उस पर सम्मोहित होना तथा दूसरा श्रीराम व लक्ष्मण से अपनी बहन के अपमान का बदला लेना।

लंका में माता सीता 

लंका पहुंच कर माता सीता बहुत विलाप कर रही थीं। रावण ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे माता सीता ने ठुकरा दिया। उन्होंने वहीं पड़े एक तिनके को उठा कर रावण से कहा कि यदि वह उन्हें छूने का प्रयास करेगा, तो वह जल कर भस्म हो जायेगा।

अशोक वाटिका में उनकी राक्षसी त्रिजटा से मित्रता हो गयी, जो उन्हें ढांढस बंधाया करती थी। इस प्रकार अशोक वाटिका में बंदी बने हुए उन्हें कई समय बीत गया, लेकिन श्रीराम की कोई सूचना नहीं मिली। वह प्रतिदिन विलाप करतीं, राक्षसियों के ताने व रावण का धमकाना सुनतीं, किन्तु माता त्रिजटा द्वारा ढांढस बंधाने से शांत हो जातीं।

माता सीता का हनुमान से मिलन 

कई महीने बीत जाने के पश्चात उनकी श्रीराम के दूत हनुमान से भेंट हुई। हनुमान रात्रि में अपना सूक्ष्म रूप लेकर माता सीता से मिलने पहुंचे थे। श्रीराम के दूत द्वारा स्वयं को खोजे जाने से माता सीता को संतोष प्राप्त हुआ तथा उन्होंने हनुमान को कहा कि उन्हें जल्द से जल्द यहां से मुक्ति दिलवा दी जाये।

पहले तो माता सीता को हनुमान के श्रीराम दूत होने पर विश्वास नहीं हुआ। तब हनुमान ने उन्हें श्रीराम की अंगूठी दिखायी, जिससे उन्हें हनुमान पर विश्वास हुआ। फिर उन्होंने हनुमान के लघु रूप को देख कर शंका प्रकट की कि ऐसे छोटे-छोटे वानर भयानक राक्षसों से कैसे लड़ेंगे। तब हनुमान ने उन्हें अपने विशाल रूप के दर्शन किये तथा वानर सेना के पराक्रम का बखान किया।

इसके बाद हनुमान ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया और पूरी लंका नगरी में आग लगा दी। लंका में आग लगाने के बाद वह पुनः माता सीता से मिलने आये और उनसे जाने के लिए आशीर्वाद मांगा। माता सीता ने श्रीराम को देने के लिए अपनी चूड़ामणि उतार कर हनुमान को दी, ताकि वह श्रीराम को यह विश्वास दिला सकें कि उनकी भेंट माता सीता से हुई थी। इसके बाद हनुमान वहां से चले गये।

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