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Religion And Spirituality : 29 मई को है महेश नवमी, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त- पूजा विधि और महत्व, माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति भी आज ही के दिन हुई थी

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Mahesh navmi, Maheshwari samaj, Religion And Spirituality : धार्मिक मान्यता है कि महेश नवमी को ही देवों के राजा महादेव के अनुग्रह से माहेश्वरी समाज की वंशवृक्ष ने अपनी उत्पत्ति पाई है। इसलिए, महेश नवमी माहेश्वरी समाज के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दिन, मंदिर और शिवालयों में विशेष पूजा और अर्चना की जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को महेश नवमी मनाई जाती है। इस वर्ष, 29 मई को महेश नवमी मनाई जाएगी। इस दिन, महादेव और जगत जननी आदि शक्ति माता पार्वती की पूजा और अर्चना की जाएगी। देवों के राजा महादेव को महेश, शंकर, बाबा बर्फानी, केदारनाथ बाबा, बैद्यनाथ, भोलेनाथ आदि नामों से पुकारा जाता है। मान्यता है कि महेश नवमी तिथि को भगवान शिव की पूजा करने से भक्त के जीवन में सभी दुःख और संकट दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही, उनके जीवन में मंगल की प्रवेश होती है। इसलिए, भक्त अपने पूज्य भगवान शिव की भक्ति और पूजा के द्वारा उनकी आराधन करते हैं।

महेश नवमी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महादेव के अनुग्रह से माहेश्वरी समाज की वंशवृद्धि हुई है। इसलिए महेश नवमी माहेश्वरी समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिन मंदिर और शिवालय में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। बहुत सारे भक्त भगवान शिव की दर्शन के लिए मंदिर जाते हैं। इस अवसर पर माहेश्वरी समाज द्वारा सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

जानें महेश नवमी का मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार नवमी तिथि 28 मई को सुबह 09:56 बजे शुरू होकर 29 मई को सुबह 11:49 बजे समाप्त होगी। भक्त इस मुहूर्त में 29 मई को सुबह और सांय के समय में भगवान महादेव की पूजा-उपासना कर सकते हैं।

महेश नवमी को ऐसे करें पूजा- अर्चना

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान शिव का ध्यान करें और दिन की शुरुआत करें। उसके बाद नित्य कर्मों से अलग होकर गंगाजल से स्नान करें। फिर आचमन करें और अपने आप को शुद्ध करें। नए कपड़े पहनें। सबसे पहले भगवान सूर्य को जल का अर्घ्य दें। भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। इस पूजा में फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, भांग, धतूरा, दूध, दही और पंचामृत का उपयोग करें। इस दौरान, शिव चालीसा का पाठ करें और मंत्रों का जाप करें। अंत में, आरती करें और सुख, समृद्धि और धन की कामना करें। दिनभर उपवास करें। शाम को आरती करें और फलाहार लें। अगले दिन पूजा-पाठ पूरा करें और व्रत खोलें।

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