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religious : यहां भविष्य वाचते हैं साक्षात हनुमान जी, खुद ब खुद नियंत्रित हो जाती है ट्रेनों की रफ्तार…

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Madhya Pradesh news, MP news, MP update, Indian railways: आप मानों या न मानों, परंतु दुनियां में कई ऐसे स्थल हैं, जिसका अपना खास महत्च है। वहां से जुड़ी कहानियां हैं, घटनाएं हैं, जो आपको हैरत में डाल देती हैं। कई मंदिरों से भी जुड़ी हैं कुछ इस तरह की हीं बातें। तो चलिए आज हम आपको ले चलते हैं मध्यप्रदेश, जहां की छंटा ही निराली है। यहां घूमने के दर्जनों एतिहासिक, धार्मिंक व पर्यटन स्थल हैं। हम आपको बताते हैं इस राज्य के शाजापुर स्थित हनुमान जी एक एक चमत्कारी मंदिर के बारे में, जहां लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं। कहते हैं यहां हनुमान जी स्वयं लोगों के भविष्य वाचते हैं। यहां से गुजर रही ट्रेनों की गति खुद ब खुद नियंत्रित हो जाती है। 

बोलाई हनुमान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है यह स्थल

मध्य प्रदेश का यह स्थल बोलाई हनुमान के नाम से धार्मिक आस्था का वर्षो से केंद्र बना है। यहां लोग अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। कहते हैं इस मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा की बाईं तरफ भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान हैं। स्थानीय लोगों का कहना हैं कि यहां जो भी आता है, उसके भविष्य में उसके साथ क्या घटना घटेगी, यहां आने वालों को पहले ही उसका पूर्वाभाष हो जाता है। कहते हैं कि मंदिर में विराजमान हनुमानजी भक्तों को उनका अच्छा या बुरा भविष्य बता देते हैं, जिसके कारण उनके भक्त भविष्य की घटनाओं को लेकर सतर्क हो जाते हैं।

रतलाम-भोपाल ट्रैक पर टकरा गई थी दो मालगाड़ियां

यह मंदिर रतलाम-भोपाल रेलवे ट्रैक के बीच बोलाई स्टेशन से करीब एक किलोमीटर दूर है। कहा जाता है कि इस मंदिर के सामने से निकलने वाली ट्रेन की स्पीड स्वत: कम हो जाती है। स्थानीय लोगों की सुनें तो वर्षों पूर्व यहां रेलवे ट्रैक पर दो मालगाड़ी आपस में टकरा गई थी। बाद में दोनों गाड़ी के लोको पायलट ने बताया था कि उन्हें इस हादसे का आभास पहले हो गया था, लेकिन फिर भी उन्होंने रफ्तार कम नहीं की और टक्कर हो गई। तब से यहां से गुजरने वाली ट्रेन की स्पीड कम कर दी जाती है। अगर कोई ड्राइवर ट्रेन की स्पीड कम नहीं करता तो ट्रेन खुद ब खुद स्लो हो जाती है। कहा जाता है कि यह मंदिर लगभग 300 साल पुराना है। इसका निर्माण देवी सिंह नामक व्यक्ति ने करवाया था। यहां 1959 में कमल नारायण त्यागी ने अपने व्यस्त जीवन को त्याग कर इसे तपोभूमि बनाया और 24 वर्ष की कड़ी तपस्या के बाद उन्होंने सिद्धियां हासिल कर ली। यह बहुत ही सिद्ध मंदिर माना जाता है।

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