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जप में नहीं करें ये भूल, तभी मिलेगा पूरा फल

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Do not make this mistake in chanting, only then you will gate full fruit : जप में नहीं करें ये भूल, तभी मिलेगा पूरा फल। कई लोगों की शिकायत होती है कि मंत्रों का खूब जप किया लेकिन लाभ नहीं मिला। कुछ लोग इस आधार पर मंत्रों को अंधविश्वास करार देने लगते हैं। वे अपनी गलती नहीं देखते हैं। पौराणिक कथाओं में ऐसे कई दृष्टांत हैं जब लोगों ने जप से असंभव से लगने वाले लक्ष्य को पा लिया। इन्हीं ग्रंथों में यह भी लिखा है कि सतयुग की तुलना में त्रेता में कम जप से ही सिद्धि मिलती है। त्रेता से कम जप द्वापर में और उससे भी कम जप कलियुग में करना पड़ता है। फिर भी यदि फल नहीं मिलता तो अवश्य कोई बड़ी गलती हो रही है। आवश्यकता उन्हें दूर करने की है। इस लेख में उन्हीं गलतियों को स्पष्ट कर रहा हूं।

मंत्र के उच्चारण को ही जप मानते हैं अधिकतर लोग

अधिकतर लोग सिर्फ मंत्र के उच्चारण को ही जप मान लेते हैं। उस दौरान उनका ध्यान नहीं और होता है। मंत्र और विचारों में एकरूपता नहीं होने से मंत्र में शक्ति नहीं हो आ पाती है। यही कारण है कि जप में मुंह से उच्चारण करते हुए मन और आत्मा से भी जोड़ने की सलाह दी जाती है। इसका कारण समझने के लिए ध्वनि और उसके तरंग के विज्ञान को समझना होगा। मोबाइल पर दूसरे छोर से आने वाली आवाज तंरग के माध्यम से पहुंचती है। उसमें कोई समस्या हो तो आवाज कटती या रुक जाती है। मंत्र में भी यही होता है। मात्र उच्चारण से किया गया मंत्र ब्रह्मांड में उठ रही विभिन्न ध्वनियों में बीच खो जाता है। जब उसमें मानसिक और आत्मिक शक्ति भी मिल जाती है तो वह ब्रह्मांड की संबंधित शक्ति को प्रभावित कर मनोवांछित फल दिलाती है।

ध्वनि विज्ञान को समझें तो नहीं रहेगा संदेह

ऋषियों ने लाखों वर्ष पूर्व यह रहस्य जान लिया था कि शब्द और ध्वनि में शक्ति है। उन्होंने इससे मनचाहा फल भी प्राप्त किया। विज्ञान धीरे-धीरे मंत्र की शक्ति को समझने लगा है। फोन, रेडियो और टीवी इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। ताजा शोध ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल और स्पेन की यूनिवर्सिडड पब्लिका डी नवरा के वैज्ञानिकों ने किया है। उसके अनुसार ध्वनि चिमटी से कपड़ों की सिलाई हो सकती है। यह चिमटी हवा में तीन तरफ से काम कर सकती है। ध्वनि से आपरेशन के बाद घावों को भरने के लिए सीना भी संभव है। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के प्रोफेसर ब्रूस डिंकवाटर के अनुसार उन्होंने 256 लाउडस्पीकर की ध्वनि को नियंत्रित कर इस प्रक्रिया को संभव बनाया है। इससे घावों को भरना भी संभव हो सकेगा। इतना ही नहीं ध्वनि के माध्यम से छोटी वस्तुओं को एक से दूसरे स्थान तक पहुंचाया भी जा सकता है।

मंत्र से इन तरह जोड़ें मन और आत्मा को

मंत्र का उच्चारण करना उसी तरह का है जैसे टेप रिकार्डर या सीडी में गाने सुनना। इसका असर क्षणिक रहता है। थोड़ी देर के लिए गाने के भाव से मन में शांति, उल्लास या प्रेम का भाव उत्पन्न होता है। फिर वह खो जाता है। अतः जप में नहीं करें ऐसी भूल। ऋषियों ने मंत्र के जप में स्थान, समय, संख्या, आसान, प्राणायाम आदि का विधान किया है। जप से पहले मंत्र के देवता का ध्यान और पूजन आवश्यक है। इसका लक्ष्य मन को मंत्र और उसके देवता के प्रति एकाग्र करना है। फिर प्राणायाम के माध्यम से तन, मन और आत्मा से मंत्र के प्रति एकजुट करने का विधान है। यही कारण है कि श्वास से जुड़े जप को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस तरह के जप से ब्रह्मांड में तीव्र ऊर्जा का संचार होता है। इसलिए ऐसे जप में कम संख्या में ही फल मिल जाता है।

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