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पानी सिर्फ पानी ही नहीं, जिंदगानी भी है भाई, प्यास बुझाने के अलावा शरीर में…

पानी सिर्फ पानी ही नहीं, जिंदगानी भी है भाई, प्यास बुझाने के अलावा शरीर में…

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जान लीजिए, पानी के कितने लाभ…

●जल पीने का नियम यही है कि जब पेट खाली रहता है, तब ही यथेष्ठ जल का पान करना चाहिए, इसलिये जल पीने का सर्वश्रेष्ठ समय प्रात:काल नींद से उठते ही है। पर्याप्त जल पीने से शरीर की भिन्न-भिन्न रस-स्रावी ग्रंथियों का स्राव बढ़ता है।

●पानी के साथ नींबू का रस लेने से अत्यधिक लाभ होता है। नींबू पानी पीने से खाद्य वस्तु छोटी आंत में सड़ नहीं पाती और उसमें विष का उत्पादन बंद होता है। जल पान शरीर की सफाई की एक विधि है। पानी पीते ही वह खून के द्वारा शरीर के तन्तुओं के भीतर फैल जाता है और शरीर के अणु-परमाणु तक को धोकर नाना प्रकार का कूड़ा-कचरा लेकर शरीर से बाहर निकल जाता है, अत: जल पान स्वयं में ही एक चिकित्सा है।

●अजीर्ण रोग में पानी दवा की तरह काम करता है। मन्दाग्नि में भोजन के आधे घंटे से 45 मिनट पूर्व आधा गिलास ठंडा पानी पीने से ठंडक की प्रतिक्रिया के द्वारा पाकस्थली में एक उत्तेजना का संचार होता है जिससे परिपाक की शक्ति बढ़ती है।

●ज्वर के समय जल पीने से बहुत लाभ होता है। रोगी जितना पानी बिना कष्ट के पी सकता है, उतना ही पानी उसे पीने देना चाहिए। जुकाम होने पर नींबू के रस के साथ पर्याप्त पानी पीना उचित है। इससे शरीर का यथेष्ट विष बाहर निकल जाता है और रोग कम हो जाता है। वात-व्याधि तथा जोड़ों की सूजन आदि में जल पान अत्यन्त लाभदायक है। यह रक्त प्रवाह को तरल करते हुए यूरिक एसिड तथा अन्यान्य हानिकारक पदार्थो को घोल कर शरीर से बाहर निकाल देता है।

●पथरी में जितना संभव हो, पानी पीना चाहिए। पित्त पथरी में यथेष्ट जल पान करने से यकृत धुल जाता है और पित्त इस प्रकार पतला हो जाता है कि वह ठोस नहीं हो पाता तथा ठोस पत्थर भी धीरे-धीरे पिघलकर बाहर निकल जाता है।

● मधुमेह रोग में शरीर में अतिरिक्त चीनी जमा हो जाती है। यथेष्ट जलपान करने से वह पसीने तथा पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाती है। एक अनुभवी डॉक्टर का कहना है कि यदि प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन आठ गिलास पानी पीए तो दो पीढिय़ों के भीतर दुनिया से मधुमेह रोग संपूर्ण रूप से समाप्त हो सकता है।

● जलपान सभी अवस्थाओं में अत्यन्त हितकर होने पर भी किसी-किसी समय सावधानी का अवलम्बन करना आवश्यक है।

● शरीर की क्लान्त अवस्था में कभी ठण्डा पानी नहीं पीना चाहिए। जब बुखार से रोगी को पसीना आता है, तब किसी भी अवस्था में उसे शीतल जल नहीं देना चाहिए। उस समय प्यास लगने पर गरम पानी दिया जा सकता है। बहुत दुर्बल व्यक्ति को भी कभी अधिक शीतल जल नहीं पीना चाहिए और न ही एक साथ अधिक पानी पीना चाहिए। जो लोग यथेष्ट जल पान नहीं कर सकते, उन्हें पहले पहल केवल एक चौथाई गिलास पानी पीना चाहिए और क्रमश: मात्रा बढ़ाना उचित है।

●यह आवश्यक है कि पीने का पानी बहुत साफ होना चाहिए। गंदा पानी पीने से नाना प्रकार के रोग हो जाते हैं। जहां साफ पानी नहीं मिलता, वहां पानी उबालकर और उसके बाद छानकर पीना चाहिए।

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