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PAKISTAN : इधर ‘औरत मार्च’ की तैयारी में पाकिस्तानी महिलाएं, उधर इस तरह इमरान सरकार की उड़ रही नींद..

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India (भारत) अर्धनारीश्वर की सोच से संपन्न संस्कृति का देश रहा है। यहां जैसे बेटा-बेटी एक समान है, वैसे ही नर-नारी की गरिमा और अधिकार का महत्व भी एक समान है। भले इक्का-दुक्का उदाहरण इसके विपरीत मिल जाएं, पर मूल रूप से भारत नारी सम्मान का देश रहा है। धार्मिक अथवा जातिगत कट्टरता की मान्यता भारतीय मान्यता नहीं है, भले इतिहास से लेकर आज तक के सीने में इसकी जलन महसूस की जा सकती। बेशक इधर के कुछ वर्षों में इसकी धनक और धमक बढ़ गई है, पर यह हमारा स्थायी चरित्र नहीं है। महिला दिवस 8 मार्च को पूरी दुनिया बनाती है। याद दिलाने लायक महत्वपूर्ण बात है कि भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में महिला दिवस के दिन कई वर्षों से ‘औरत मार्च’ का आयोजन महिला अधिकार के लिए किया जाता है। मीडिया से मिल रही जानकारी के अनुसार, एक और पाकिस्तानी महिलाएं 8 मार्च के अपने ‘औरत मार्च’ की तैयारी कर रही हैं,तो दूसरी ओर इसे लेकर इमरान सरकार की नींद उड़ी हुई है, क्योंकि विपक्ष तो पहले से ही तमाम मुद्दों को लेकर उन्हें घेर ही रहा है, महिलाएं भी अब जमकर विरोध कर रही हैं।

मार्च रोकने की भी चल रही तैयारी

बताया जा रहा है कि हक की लड़ाई लड़ने वाली महिलाओं से रूढ़िवादिता और कट्टरपंथ के हंटर से ‘औरत की सही जगह चादर और चारदीवारी, बताने वाले हुक्मरान डरे-सहमे से हैं। औरतों को बेचारी बता सियासत करने वालों का सिंहासन डोलता भी नजर आ रहा है। ऐसे में ‘औरत मार्च’ रोकने के लिए पाकिस्तान के हुक्मरान पुरजोर ताकत लगा रहे हैं।

‘मेरा जिस्म, मेरी मर्जी’ का नारा

पाकिस्तान में हर साल 8 मार्च को महिलाओं के गैर सरकारी संगठन ‘मेरा जिस्म, मेरी मर्जी’ नारे के साथ देश भर में ‘औरत मार्च’ निकालते हैं। इस मार्च में महिलाएं अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करती हैं। इस साल पांचवीं बार औरत मार्च निकाली जाएगी। पहली बार 8 मार्च, 2018 को निकाली गई थी। एक तबका इस मार्च का पक्षधर है। वहीं समाज का दूसरा तबका इसकी मुखालफत करता रहा है।

पढ़े-लिखे लोग भी कर रहे विरोध

डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला अधिकार संगठनों से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि जो लोग औरत मार्च को गैर-इस्लामी और अनैतिक बता रहे हैं, वे केवल अनपढ़ लोग नहीं हैं, जिन्हें नजरअंदाज किया जाना चाहिए। ये लोग एक कट्टरपंथी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इन लोगों को महिलाओं के मुख्यधारा से जोड़ने और बच्चियों के स्कूल जाने से आपत्ति है।

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