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Religious : क्या आप जानते हैं ? झारखंड के बैद्यनाथ धाम में है बगलामुखी धाम, बगलामुखी के सामने बैठे हैं बैद्यनाथ; दक्ष यज्ञ के पूर्व से है बैद्यनाथ धाम

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Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm- adhyatm : हरिद्वार दक्ष यज्ञ में सती का शरीर योगाग्नि में जला और शिव कंधार, चीन से माम्यार तक सती प्रेम में सती के जले शरीर को लेकर पागलों की भांति हजारों साल भटकते रहे। तब संहार का क्रम रुक गया। इसे देख कर विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के जले हुए शरीर को एक सौ आठ खण्ड में बांट दिया। वह सती का अंग एक-सौ आठ स्थानों पर गिरा, तो इतना ही सिद्ध पीठ बना। पंडित रामदेव पाण्डेय ने राम-जानकी मन्दिर बरियातू में 22वें दिन की कथा में देवी भागवत सप्तम स्कंध अध्याय 38 श्लोक 14 गीता प्रेस गोरखपुर तथा खेमराज श्री कृष्ण दास कल्याण प्रेस के संस्करण को उद्धरित करते हुए कहा कि स्वयं आदि शक्ति ने हिमालय राजा को बताया कि झारखंड में बैद्यनाथ धाम देवघर में मैं बगलामुखी देवी के रूप में हूं, गया में मंगला के नाम से हूं। यह शास्त्रीय प्रमाण है। अर्थात, बाबा मंदिर के पीछे बगलामुखी का स्थान वैदिक कालीन है, इसलिए बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भी बगलामुखी देवी के सामने स्थित है।

यह बगलामुखी दस महाविद्या में एक विद्या है

यह बगलामुखी दस महाविद्या में एक विद्या है, जब शिव सती विछोह में ब्रह्मांड को नष्ट करने चले, तो दसों दिशाओं से दस महाविद्याएं, जो सती का ही स्वरूप थीं, प्रकट हुईं और शिव को ब्रह्मांड नष्ट करने से रोका। उसी विद्या में बगलामुखी देवी है, जिन्हें पीताम्बरा देवी कहते हैं। जो सौराष्ट्र में हल्दी रंग के सागर में चतुर्दशी मंगलवार को राक्षसों के वध के लिए प्रकट हुईं। इसके भैरव महाकाल, देवता वाराह हैं। इसी तरह मध्यप्रदेश के नलखेड़ा में बगलामुखी का मन्दिर महाभारत काल का है, तो दतिया का बगलामुखी मंदिर इसी सदी का है। एक बाबा ने नलखेड़ा से आकर अश्वत्थामा की पुण्य भूमि पर बगलामुखी देवी की स्थापना की। कामाख्या में सती का काम भाग गिरा, जहां त्रिपुर भैरवी हैं, तो जिह्वा चीन में, जिसे नील सरस्वती या बौद्ध तारा देवी कहते हैं। तीन सिद्ध पीठ बांग्लादेश और म्यांमार में भी हैं। पंडित रामदेव पाण्डेय स्वयं भी बगलामुखी उपासक हैं, जिन्होंने गहनता से इसकी खोज पुराणों से की है।

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