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Spirituality : क्या आप जानते हैं? अन्याय और अधर्म के मार्ग पर चलकर भी दुर्योधन को क्यों मिला स्वर्ग लोक

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Story of Mahabharata : महाभारत का संपूर्ण युद्ध धर्म और अधर्म के बीच लड़ा गया था। भगवान श्री कृष्ण ने अन्याय और अत्याचार के खिलाफ जिस- जिस युद्ध की घोषणा की थी, उसे धर्म युद्ध कहा जाता है। सत्य पक्ष के साथ भगवान स्वयं खड़े थे। जबकि कौरव पक्ष में तमाम महारथी थे। कौरव पक्ष का नेतृत्व दुर्योधन के हाथों में था। दुर्योधन ने अहंकार वश अन्याय और अधर्म का सहारा लिया। 18 दिन तक चले युद्ध में इस धरा के कई महारथी वीरगति को प्राप्त हुए। कौरव तो सभी मारे जा चुके थे। युद्ध समाप्ति के बाद पांडवों ने भी कुछ समय तक राज्य किया फिर हिमालय चले गए। वहां पहुंचते ही एक-एक करके सभी गिरते चले गए। एकमात्र युधिष्ठिर अपने साथी कुत्ते के साथ बचे रहे और सिर्फ वही जीवित स्वर्ग गए। कहा जाता है कि वहां उन्हें स्वर्ग और नरक दोनों देखना पड़ा। शेष पाण्डव भी मृत्यु लोक की पारी समाप्त होने पर देह त्याग के बाद स्वर्ग पहुंचे। स्वर्गलोक में पाण्डव भाइयों के साथ युधिष्ठिर भी थे।

दुर्योधन को स्वर्ग लोक मिलने पर भीम ने किया सवाल

युधिष्ठिर जब स्वर्गलोक पहुंचे तब वहां उनकी दृष्टि दुर्योधन पर पड़ी। वहां अपने भाइयों से भी उनका सामना हुआ। दुर्योधन को स्वर्ग में देखकर भीम के मन में जिज्ञासा उठी। उन्होंने तपाक से पूछा भैया इस दुर्योधन ने तो आजीवन दुष्टता की है। इसने हमेशा अनीति और अन्याय का सहारा लिया है। उसने कौन सा ऐसा धर्म का कार्य किया है, जिसके पुण्य से उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई। क्या न्याय के देवता इससे अनभिज्ञ थे अथवा उनसे कोई चूक हुई है। इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि धर्म लोक का यह विधान है कि किसी ने जीवन में किंचित मात्र भी पुण्य का कार्य किया है, तब भी उसे स्वर्ग के दर्शन होते है। इसके बाद में भीम ने दृष्टि से पूछा दुर्योधन में तमाम बुराइयों के होते हुए भी आखिर कौन सा एक सद्गुण था, जिसके परिणामस्वरूप उसे स्वर्ग में स्थान मिला है। भीम ने पूछा कि आखिर वह कौन सा पुण्य है?

भीम की जिज्ञासा को युधिष्ठिर ने किया शांत

भीम के इस कौतूहल को शांत करते हुए धर्मराज युद्धिष्ठिर ने कहा कि दुर्योधन का अपने जीवन का ध्येय पूरी तरह स्पष्ट था। उसका लक्ष्य तय था- हस्तिनापुर का राजसिंहासन पाना। इस निमित उसे सत्य- असत्य को लेकर किसी भी तरह की दुविधा नहीं थी। उसने उसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य किया। दुर्योधन को बचपन से ही सही संस्कार प्राप्त नहीं हुए। साथ ही माता-पिता के अंधत्व के कारण उसके ऊपर गलत लोगों का प्रभाव रहा। उसे सही- गलत बताने वाला कोई नहीं मिला। उसे हमेशा लगा कि उसके पिता के साथ अन्याय हुआ है। इसलिए वह सच का साथ नहीं दे पाया। उसके लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में चाहे कितनी ही बाधएं क्यों ना आई हों, उसका अपने उद्देश्य पर कायम रहना,दृढ़संकल्पित रहना ही उसकी अच्छाई है।

उद्देश्य के प्रति एकनिष्ठता मानव का सबसे बड़ा सद्गुण

युद्धिष्ठिर ने भीम को समझाया कि अपने उद्देश्य के प्रति एकनिष्ठता मानव का सबसे बड़ा सद्गुण है। इस सद्गुण के कारण ही उसकी आत्मा को कुछ पल के लिए स्वर्ग के सुख भोगने का अवसर प्राप्त हुआ है। युद्धिष्ठिर की बात सुनकर भीम की जिज्ञासा शांत हुई। इस ज्ञान भरी बात सुनकर कुछ समय भीम सहित पांडवों और दुर्योधन ने कुछ समय एक साथ बिताया।

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