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फाल्गुन में प्रेम की बात

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सुधीर राघव

फाल्गुन में प्रेम की बात होनी चाहिए. प्रकृति यही संदेश देती है. जिनकी बीवी है वे प्रेम के सार को, इसके लवण को और क्षार को भी समझते हैं. जिनकी बीवी नहीं है, वे बेचारे किसी बीवी सी की ताक में घात लगाते हैं. बदले में गरियाये जाते हैं. कभी थोड़ा बहुत फल भी पा जाते हैं.
क्योंकि दुनिया प्रेम से चलती है. इसलिए उबलता उफनता प्रेम उनके हिस्से में भी आ जाता है.

ताक और घात में रहने वालों को कई बार ज्यादा प्रेम मिल जाता है, बजाय इसके कि उन्हें सबसे ज्यादा गलियां मिलतीं.

अर्थ शास्त्र में इसे कहते हैं, जितना ज्यादा जोखिम, उतना ज्यादा लाभ. नो गेन विदाउट पेन (no gain without pain). पश्चिम के दर्शन में प्रेम का भी अर्थशास्त्र है, जो जोखिम आधारित है. यह दर्शन जॉन कीट्स के ला बेले डेम सेंस मर्सी (La Belle Dane sans merci ) से गालिब के ‘आग के दरिया’ तक एक समान दिखता है.

पुरुष आग के दरिया में कूदना चाहता है. इसलिए नहीं क्योंकि उसे प्रेम है, बल्कि इसलिए क्योंकि उसे लगता है कि आग के दरिया में कूदना बहादुरी है.‌ पश्चिमी दर्शन के पुरुष में प्रेम है ही नहीं वह सिर्फ दिखाना चाहता है कि वह बहादुर है. इसलिए वह जोखिम उठाता है. मगर यह जोखिम इतना नहीं होना चाहिए कि बीवी छोड़कर बीवी सी की तलाश में इस हद तक चले जाओ कि निर्लज्जता के किस्से वाशिंगटन पोस्ट, वाल स्ट्रीट जरनल और द गार्जियन में भी छप जाएं. आपको राजधर्म याद दिलाना पड़े.

याद रखो!
शुद्ध भारतीय प्रेम जोखिम उठाना नहीं है, वह तो लगन में मगन होना है. ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन. हम प्रेम में मगन होने वाले लोग हैं, हमारे दर्शन में प्रेम व्यापार नहीं है और उसका कोई अर्थशास्त्र भी नहीं है.

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