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लोकमंगल ही है मीडिया का धर्म : प्रो.संजय द्विवेदी

samachar Samrat

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आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी से समाचार सम्राट की खास बातचीत

भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक प्रो.(डा) संजय द्विवेदी हिंदी पत्रकारिता का जाना-पहचान चेहरा हैं। सक्रिय पत्रकारिता के बाद अकादमिक जगत में आए संजय द्विवेदी माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलसचिव भी रहे हैं। निरंतर लेखन, प्रवास और व्याख्यानों से आपने राष्ठ्रीय स्तर पर खास पहचान बनाई है। रविवार को उन्हें इंदौर (मप्र) में उनकी विशेष सेवाओं के लिए ‘हिंदी गौरव अलंकरण’ से सम्मानित किया जा रहा है। इस मौके पर samachar samrat.com ने उनसे खास बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश-

Q -इस दौर में जो पत्रकारिता का चरित्र उभर कर सामने आया है, उसे क्या कहेंगे?

A- पत्रकारिता का विस्तार बहुत हुआ है। उसके अनेक मंच हो गए हैं। खासकर वेब आधारित मीडिया की बहुलता ने हालात बदल दिए हैं। मीडिया के इस विस्तार में हमें ज्यादा जिम्मेदारी से काम करने की जरूरत है। ताकि फेक न्यूज और नरेटिव बनाने की गतिविधियों को रोका जा सके। मीडिया का काम ही है लोकमंगल। अगर हम अपने इस कठिन दायित्वबोध से अलग होते हैं तो अपने पत्रकारीय धर्म का पालन नहीं कर पाएंगे।

Q-क्या आपको नहीं लगता कि अब प्रिंट और वेब, दोनों ही माध्यमों में आम आदमी की बातें नहीं लिखी जा रहीं?

A- मैं ऐसा नहीं मानता। हर मीडिया के केंद्र में ‘लोग’ ही हैं। मीडिया एक ऐसा उपक्रम है जो लोगों से, उनके सपनों, आकांक्षाओं, जरूरतों और रूचियों से अलग होकर नहीं चल सकता। उसे अंततःलोगों की आवाज बनना होता है। लोगों के साथ दिखना होता है। लाख बाजारवाद के बाद भी मीडिया लोगों की आवाज है और बना रहेगा। इसी में उसकी लोकप्रियता और मुक्ति दोनों है। आप यह कह सकते हैं कि वह महानगर या नगर केंद्रित अधिक है। इसका कारण यह है कि उसके पाठक नगरों में ज्यादा हैं। हर माध्यम अपने उपभोक्ताओं का केंद्र में रखता ही है।

Q-अब अखबारों में रिपोर्ट्स नहीं दिखती, रिपोर्टाज भी नहीं दिखते। कारण क्या है? लोग पढ़ना नहीं चाहते या लिखने वाले नहीं रहे अथवा संपादक उस योग्य नहीं हैं? खास कर हिंदी अखबारों में?

A- अखबारों ने अपना रूप बदला है। अब वे ज्यादा सुर्दशन, ज्यादा सरोकारी और विविध विषयों पर बात करते हैं। वे फीचर की सामग्री पर ज्यादा जोर देते दिखते हैं। लोगों की भावनाएं, मन की संवेदना को छूने वाले विषय उनकी विषयवस्तु को प्रभावित कर रहे हैं। उदारीकरण, साक्षरता, आर्थिक प्रगति ने मिलकर भारतीय अखबारों को शक्ति दी। भारत में छपे हुए शब्दों का मान बहुत है। अखबार हमारे यहां स्टेट्स सिंबल की तरह हैं। टूटती सामाजिकता, मांगकर पढ़ने में आती हिचक और एकल परिवारों से अखबारों का प्रसार भी बढ़ा। इस दौर में तमाम उपभोक्ता वस्तुएं भारतीय बाजार में उतर चुकी थीं जिन्हें मीडिया के कंधे पर लदकर ही हर घर में पहुंचना था, देश के अखबार इसके लिए सबसे उपयुक्त मीडिया थे। क्योंकि उनपर लोगों का भरोसा था और है।

एक बड़े अखबार ने चीफ रिपोर्टर श्रेणी के खबरनवीसों को हर माह 50 प्रतियां बढ़ाने की जिम्मेदारी दी है। अब पत्रकार खबर लिखे या अखबार की प्रतियां बढ़ाए?

मजबूर करके नहीं, किंतु अपने अखबार के प्रचार-प्रसार में सहयोग देना गलत नहीं है। हालांकि बड़े अखबारों में प्रसार का विभाग होता है, वही इस काम को देखता है। मुझे सही संदर्भ नहीं पता इसलिए इस विषय पर टिप्पणी करना ठीक नहीं।

Q- अखबारों को देखें तो वो या तो मोदी के फेवर में खड़े आते हैं या मोदी के विरोध में। इसे आप कैसे देखते हैं? क्या ये हिंदी जर्नलिज्म का नुकसान नहीं?

A- मुझे लगता है एजेंडा पत्रकारिता गलत है। आप किसी व्यक्ति के विरोध में अभियान चलाते हैं, नरेटिव गढ़ते हैं। यह गलत है। हमेशा हमें सत्य के साथ रहना चाहिए। सत्यान्वेषण ही पत्रकारिता का मूल है। किंतु व्यवस्था के विरूद्ध सवाल उठाने के बजाए जब हम किसी व्यक्ति पर हमले करते हैं, तो अपनी जगहंसाई ही कराते हैं। व्यक्ति पूजा या व्यक्ति का विरोध पत्रकारिता नहीं है, यह सिर्फ एजेंडा है। दुख है कि कुछ लोग इसे ही पत्रकारिता मान रहे हैं।

Q- हिंदी पत्रकारिता में साहित्य कमोबेश हाशिए पर जा रहा है। कहानियां प्रायः बंद ही हो गई हैं। साहित्यिक गोष्ठियों की खबरें भी कम ही प्रकाशित होती हैं। आप इसका क्या कारण मानते हैं?

A- समाज में साहित्य की जो जगह है वही मीडिया में दिखेगी। अगर जिंदगी से काव्य, कहानियां, किताबें गायब हैं तो मीडिया में वे कैसे दिखेंगीं। जिंदगी सोशल मीडिया से बन बिगड़ रही है, अखबारों में ट्वीट्स छापे जा रहे हैं। सोशल मीडिया से खबरें भी प्रभावित हो रही हैं। यह नए समय का संवाद है। इसे समझिए।

Q- क्या आप मानते हैं कि वेब पत्रकारिता ने प्रिंट पत्रकारिता पर गहरी चोट की है? अखबारों के प्रसार पर बेहद प्रतिकूल असर हुआ है। प्रसार बढ़ ही नहीं रहा है। 

A- आने वाला समय प्रिंट माध्यमों के लिए और कठिन होता जाएगा। ई-मीडिया, सोशल मीडिया और स्मार्ट मोबाइल पर आ रहे कटेंट की बहुलता के बीच लोगों के पास पढ़ने का अवकाश कम होता जाएगा। खबरें और ज्ञान की भूख समाज में है और बनी रहेगी, किंतु माध्यम का बदलना कोई बड़ी बात नहीं है। संभव है कि मीडिया के इस्तेमाल की बदलती तकनीक के बीच प्रिंट माध्यमों के सामने यह खतरा और बढ़े। यहां यह भी संभव है कि जिस तरह मीडिया कन्वर्जेंस का इस्तेमाल हो रहा है उससे हमारे समाचार माध्यम प्रिंट में भले ही उतार पर रहें पर अपनी ब्रांड वैल्यू, प्रामाणिकता और विश्वसनीयता के कारण ई-माध्यमों, मोबाइल न्यूज एप, वेब मीडिया और सोशल मीडिया पर सरताज बने रहें। तेजी से बदलते इस समय में कोई सीधी टिप्पणी करना बहुत जल्दबाजी होगी, किंतु खतरे के संकेत मिलने शुरु हो गए हैं, इसमें दो राय नहीं है।

Q- न्यू मीडिया का आप क्या भविष्य देखते हैं? 

A- बहुत बेहतर। भारत में कई अखबारों के बंद होने की सूचनाएं मिली हैं तो दूसरी ओर कई अखबारों का प्रकाशन भी प्रारंभ हुआ है। ऐसी मिली-जुली तस्वीरों के बीच में आवश्यक है कि इस विषय पर समग्रता से विचार करें। किंतु डिजिटल कन्वर्जेंस को समझना जरूरी है।

Q- आप खुद बड़े अखबारों में संपादक रह चुके हैं। प्रिंट के सामने क्या चुनौतियां आने वाली हैं और न्यूजपेपर इंडस्ट्री उससे कैसे निकलेगी?

A– हमें यह ध्यान रखना होगा कि प्रिंट पर लोग कम आ रहे हैं, या उनका ज्यादातर समय अन्य डिजिटल माध्यमों और मोबाइल पर गुजर रहा है। ऐसे में इस शक्ति को नकारने के बजाए उसे स्वीकार करने में ही भलाई है। आपके अखबार की ‘ब्रांड वैल्यू’ है, सालों से आप खबरों के व्यवसाय में हैं, इसकी आपको दक्षता है, इसलिए आपने लोगों का भरोसा और विश्वास अर्जित किया है। इस भीड़ में अनेक लोग डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म पर खबरों का व्यवसाय कर रहे हैं। किंतु आपकी यात्रा उनसे खास है। आपका अखबार पुराना है, आपके अखबार को लोग जानते हैं, भरोसा करते हैं। इसलिए आपके डिजिटल प्लेटफार्म को पहले दिन ही वह स्वीकार्यता प्राप्त है, जिसे पाने के लिए आपके डिजीटल प्रतिद्वंदियों को वर्षों लग जाएंगे। यह एक सुविधा है, इसका लाभ अखबार को मिलता ही है। अब कटेंट सिर्फ प्रिंट पर नहीं होगा। वह तमाम माध्यमों से प्रसारित होकर आपकी सामूहिक शक्ति को बहुत बढ़ा देगा। आज वे संस्थान ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं, जो एक साथ आफलाइन (प्रिंट), आनलाइन(पोर्टल,वेब, सोशल मीडिया), आन एयर(रेडियो), मोबाइल(एप) आनग्राउंट(इवेंट) पर सक्रिय हैं। इन पांच माध्यमों को साधकर कोई भी अखबार अपनी मौजूदगी सर्वत्र बनाए रख सकता है। ऐसे में बहुविधाओं में दक्ष पेशेवरों की आवश्यकता होगी, तमाम पत्रकार इन विधाओं में पारंगत होंगे। उनके विकास का महामार्ग खुलेगा। मल्टी स्किल्ड पेशेवरों के साथ एकीकृत विपणन और ब्रांडिग सोल्युशन की बात भी होगी। कन्वर्जेंस से मानव संसाधन का अधिकतम उपयोग संभव होगा और लागत भी कम होगी। अचल संपत्ति की लागत और समाचार को एकत्र करने की लागत भी इस सामूहिकता से कम होगी।

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