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Bhagwat Katha : वर्ण विभाग विराट पुरुष के अंग हैं, हर सनातनी इस अंग में विराजमान है : पंडित रामदेव 

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Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm adhyatm : राम जानकी मंदिर हाउसिंग कालानी बरियातू में चौथा दिन की कथा में पं रामदेव जी ने कहा कि भागवत और गीता कहती हैं कि चारों वर्ण का सृजन भगवान ने किया है। वह चारों वर्ण विराट पुरुष का ही शरीर है। सर ब्राह्मण है, सीना क्षत्रिय हैं, उदर वैश्य है और पैर शुद्र हैं। यह ब्रह्म का भाव है। ब्रह्म का अंग है। सनातन या हिन्दुत्व मे चारों वर्ण में ब्रह्म का वास है। शरीर का हर भाग आवश्यक है, परन्तु छद्म साम्यवादी कहते हैं, शरीर एक है तो वर्ण विभाग ऊपर नीचे क्यों है। पर यदि आंख के पास कान गुदा मुत्र मार्ग को सर्जरी कर जोड़ दिया जाए। हथेली और सुपली को एक साथ जोड़ दिया जाए तो क्या यह मनुष्य का शरीर कहलाएगा। यह राक्षस- एलियन का शरीर कहलाएगा। शरीर तो यही है , 

अपने को ईश्वर का अंश समझकर पुलकित होना चाहिए

इसलिए सतातन में आम व्यक्ति को ईश्वर का अंश समझकर पुलकित होना चाहिए। हर जीव में उस ब्रह्म का वास है। जैसे सोना के आधा मिलीग्राम सोने का टुकड़ा का सम्बोधन में हम सोना ही कहते हैं। ठीक इसी तरह ब्रह्म का हर सृजन ही ब्रह्म है। भारत यही रीति-रिवाज, संस्कृति भाषा और वर्ण व्यवस्था है जो सिन्धु नदी सभ्यता से आज तक अजय अमर चिरंजीवी है और दुनिया के शेष सभ्यताओं का अन्त और रूस जैसे साम्यवाद का अन्त मात्र सतर साल में हो गया। कथा में कोकर, बरियातू, बुटी मोड़, मोरहाबादी से भक्त गण आकर भागवत कथा का रस्सास्वादन कर रहे हैं। अधिक मास में भागवत, देवी भागवत और शिव पुराण की कथा लगातार यहां सन्ध्या समय होगी।

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