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Dharma-Karma, Spirituality : महाप्रभु जगन्नाथ की महिमा अपरंपार, जानें इनके प्रसाद से जुड़े रोचक तथ्य

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Mahaprabhu Jagannath Ki Mahima, kaise taiyar hota hai mahaprabhu Jagannath ka Prasad, Puri news, religious news, Dharm aur adhyatm : मंदिरों के प्रसाद की अलग-अलग विशेषता होती है। सामान्यतः मंदिरों में भगवान के आशीर्वाद के रूप में भक्तों को दिया जाने वाला भोग प्रसाद कहलाता है, लेकिन जगन्नाथ पुरी के मंदिर में दिया जाने वाला प्रसाद महाप्रसाद के नाम से जाना जाता है। इस बात की मान्यता है कि जो भक्त इस महाप्रसाद को लेता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और वह भगवान जगन्नाथ के आशीर्वाद को प्राप्त करता है। यह प्रसाद अन्य मंदिरों से भिन्न होता है और विशेष महत्व रखता है। वास्तव में, इसे विशेष तरीके से तैयार किया जाता है और लाखों की संख्या में लोग इसे ग्रहण करने के लिए आते हैं। इस लेख में हम आपको पूरी के महाप्रभु जगन्नाथ जी के महाप्रसाद से संबंधित कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताएंगे।

दुनिया की सबसे बड़ी रसोई में तैयार होता है महाप्रसाद

ओड़िशा के पुरी शहर में स्थित जगन्नाथ मंदिर एक बहुत प्रसिद्ध तीर्थस्थल के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहां की रसोई अत्यंत विशेष है और यह दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है। इस रसोई में जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद का निर्माण किया जाता है और इसकी तैयारी करने के लिए सैकड़ों लोगों का सहयोग लिया जाता है। मान्यता के अनुसार इस रसोई में महाप्रसाद का निर्माण स्वयं देवी लक्ष्मी द्वारा किया जाता है। यही नहीं, जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भी इस रसोई में भोग तैयार किया जाता है और उसे सभी भक्तों के बीच बांट दिया जाता है। इस रसोई में नियमित रूप से 56 प्रकार के भोग तैयार किए जाते हैं।

मिट्टी के बर्तनों में तैयार किया जाता है महाप्रसाद

जगन्नाथ मंदिर में प्रयोग होने वाला महाप्रसाद विशेष ढंग से तैयार किया जाता है और इसमें लहसुन और प्याज का उपयोग नहीं किया जाता है। यह आहार पूर्णतः सात्विक होता है और इसे धार्मिक ग्रंथों के निर्देशों के अनुसार तैयार किया जाता है। इस महाप्रसाद का विशेषता है कि इसे मिट्टी के पात्रों में ही बनाया जाता है। इन मिट्टी के पात्रों की विशेषता यह है कि वे लाल रंग के होते हैं। इसके अलावा मान्यता है कि प्रतिदिन नए पात्रों का उपयोग करके महाप्रसाद तैयार किया जाता है।

कम नहीं पड़ता है महाप्रसाद

मान्यता के अनुसार, इस रसोई में कितने भी लोग भोजन कर सकते हैं और महाप्रसाद छोड़ सकते हैं, लेकिन इसकी मात्रा कभी कम नहीं हो सकती है। इसके अलावा महाप्रसाद में मिलने वाली सामग्री कभी बेकार नहीं जाती है। यह रसोई अपनी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यहां हर दिन हजारों या लाखों लोग महाप्रसाद लेते हैं और यह सभी की भूख को शांत करने का कार्य करता है। यहां नियमित रूप से महाप्रसाद में तैयार होने वाली सामग्री मानों पूरे साल के लिए भी पर्याप्त होती है।

दो कुओं के पानी से तैयार किया जाता है महाप्रसाद

भगवान जगन्नाथ के भक्त उनके महाप्रसाद को तैयार करने के लिए मंदिर के पास स्थित दो कुएं का पानी उपयोग करते हैं। इन कुओं को “गंगा-जमुना” के नाम से पुकारा जाता है। यह नाम दो पवित्र नदियों के नाम पर आधारित है, इसलिए इन कुओं के पानी से तैयार किया जाने वाला प्रसाद अत्यंत शुद्ध और पवित्र होता है। भगवान जगन्नाथ को नियमित रूप से दिन में 6 बार भोग चढ़ाया जाता है, जिसमें 56 अलग-अलग प्रकार के व्यंजन शामिल होते हैं।

महाप्रसाद तैयार करने का अनोखा तरीका

महाप्रभु जगन्नाथ जी के भोग के लिए रोज़ 56 प्रकार के विशेष व्यंजन तैयार किए जाते हैं, जो भगवान जगन्नाथ को अत्यंत प्रिय होते हैं। यह महाप्रसाद अनूठा है, क्योंकि इसे मंदिर की रसोई में तैयार किया जाता है। यहां 7 मिट्टी के बर्तन एक पर दूसरे रखे जाते हैं। इस महाप्रसाद को लकड़ी की एक तख्त पर तैयार किया जाता है। इन बर्तनों में सबसे ऊपर रखी सामग्री सबसे पहले पक जाती है और इसके बाद एक के बाद एक चीजें तैयार होती हैं। वास्तव में इस अद्वितीय तकनीक से पूरा चमत्कार उत्पन्न होता है कि यहां सबसे ऊपर रखा गया भोजन सबसे पहले तैयार हो जाता है। यह महाप्रसाद वास्तव में पूरे देश में प्रसिद्ध है और लाखों लोगों की भूख को कम करने का एक माध्यम है।

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