योग मुद्राओं के अनगिनत लाभ हैं। इसके नियमित अभ्यास से बदल जाएगी जिंदगी। यह शरीर एवं मन को शुद्ध करता है। साथ ही स्वस्थ रखने में बेजोड़ है। यह आध्यात्मिक चेतना जगाने में भी प्रभावी है। विज्ञान भी हमारे शरीर की मुद्रा और आसन को स्वास्थ्य से जोड़ता है। डाक्टर भी कहते हैं कि बैठने, चलने व सोने के दौरान शरीर की स्थिति स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। भारतीय ऋषि उनसे काफी आगे थे। उन्होंने इस बारे में हमें ज्ञान का भंडार सौंप दिया है।
शरीर को शुद्ध कर ध्यान की ओर अग्रसर करती हैं मुद्राएं
मुद्रा से पहले शरीर को शुदध किया जाता है। इसके बाद ध्यान मार्ग की ओर अग्रसर होता है। ध्यान से ही व्यक्ति अभिष्ट की प्राप्ति कर सकता है। मुद्रा रहस्य के अनुसार जब तक आपका शरीर स्वस्थ नहीं होगा, आप किसी कार्य में एकाग्र नहीं होंगे। ऋषियों ने मुद्राओ को मंत्र साधना के साथ भी जोड़ा है। ताकि व्यक्ति भगवान के साथ अच्छा स्वस्थ शरीर भी प्राप्त कर सके। मुद्राओं के अभ्यास से गंभीर से गंभीर रोग भी समाप्त हो सकता है।
क्या हैं योग मुद्राएं
शरीर का आधार प्राण वायु है। यहीं विभिन्न अवयवों एवं स्थानों पर भिन्न कार्य करती है। इस दृष्टि से उनका नाम पृथक-पृथक है। जैसे- प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान। यह वायु समुदाय पांच प्रमुख केंद्रों में अलग-अलग कार्य करता है। प्राण स्थान मुख्य रूप से हृदय के अनाहत चक्र में है। यह नाभि से लेकर कठं तक फैला हुआ है। इसका मुख्य कार्य भोजन पचाना है। इसके साथ ही उसके रस को अलग इकाइयों में बांटना, उससे रस बनाना और धातुओं का निर्माण करना है। योग मुद्राओं के अनगिनत लाभ हैं।
स्वास्थ्य व शक्ति का केंद्र है अपान
अपान को स्वास्थ्य और शक्ति केंद्र माना जाता है। योग में इन्हें स्वाधिष्ठान और मूलाधर चक्र कहा जाता है। अपान का कार्य मल, मूत्र, वीर्य, रज और गर्भ को बाहर निकालना है। सोना, बैठना, उठना, चलना आदि में सहयोग करना भी है। अर्जन की तरह विर्सजन भी जीवन के लिए अनिर्वाय है। शरीर में केवल अर्जन की ही प्रणाली हो तो समस्या होगी। विर्सजन न हो तो व्यक्ति का एक दिन भी जिंदा रहना मुश्किल हो जाएगा।
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उपयोगी मुद्राएं
मध्यमा और अनामिका दोनों अँगुलियों एवं अंगूठे के अग्रभाग को मिलाकर दबाएं। इस प्रकार अपान मुद्रा निर्मित होती है। तर्जनी (अंगूठे के पास वाली) और कनिष्ठा (सबसे छोटी अंगुली) सीधी रहेगी।
अपान मुद्रा के लिए आसन
इसमें उत्कटासन (उकड़ू बैठना) उपयोगी है। वैसे सुखासन जैसे ध्यान-आसन में भी इसे किया जा सकता है। इसे रोज तीन बार में 16-16 मिनट करें। 48 मिनट का अभ्यास अनुभूति के स्तर पर पहुँचाता है। प्राण और अपान दोनों का शरीर में महत्व है। प्राण और अपान दोनों को समान बनाना ही योग का लक्ष्य है। प्राण और अपान दोनों के मिलन से चित्त में स्थिरता और समाधि उत्पन्न होती है। वैसे योग मुद्राओं के अनगिनत लाभ हैं।
मुद्राओं के लाभ
शरीर और नाड़ियों की शुद्धि होती है। मल और दोष विसर्जित होते है। शरीर को निर्मलता प्राप्त होती है। कब्ज दूर होती है। यह बवासीर में भी उपयोगी है। अनिद्रा रोग दूर होता है। पेट के विभिन्न अवयवों की क्षमता विकसित होती है। वायु विकार एवं मधुमेह का शमन होता है। मूत्रावरोध एवं गुर्दों का दोष दूर होता है। दांतों के दोष एवं दर्द दूर होते है। पसीना लाकर शरीर के ताप को दूर करती है। हृदय शक्तिशाली बनता है।
मुख्यत: पांच बंध हैं
मूल बंध, उड्डीयान बंध, जालंधर बंध, बंधत्रय और महा बंध।
छह आसन मुद्राएं
व्रक्त मुद्रा, अश्विनी मुद्रा, महामुद्रा, योग मुद्रा, विपरीत करणी मुद्रा, शोभवनी मुद्रा।
दस हस्त मुद्राएं
ज्ञान मुद्रा, पृथ्वी मुद्रा, वरुण मुद्रा,वायु मुद्रा,शून्य मुद्रा,सूर्य मुद्रा, प्राण मुद्रा,लिंग मुद्रा, अपान मुद्रा, अपान वायु मुद्रा।
अन्य मुद्राएं
योग मुद्राओं के अनगिनत लाभ हैं। इनमें सुरभी मुद्रा, ब्रह्ममुद्रा, अभयमुद्रा व भूमि मुद्रा हैं। अन्य में भूमि स्पर्शमुद्रा व धर्मचक्रमुद्रा व वज्रमुद्रा हैं। फिर वितर्कमुद्रा, जनानामुद्रा, कर्णमुद्रा, शरणागतमुद्रा व ध्यान मुद्रा का नंबर आता है। सूची मुद्रा, ओममुद्रा अंगुलियांमुद्रा, महात्रिकमुद्रा व कुबेरमुद्रा भी अहम हैं। शंखमुद्रा, रुद्रमुद्रा, , चीनमुद्रा, वरदमुद्रा व मकरमुद्रा उपयोगी हैं। पुष्पपूतमुद्रा, वज्रमुद्रा व हास्यबुद्धामुद्रा भी ठीक है। ज्ञानमुद्रा, गणेशमुद्रा, मातंगीमुद्रा व गरुड़मुद्रा उल्लेखनीय हैं। साथ ही कुंडलिनीमुद्रा, शिवलिंगमुद्रा व ब्रह्ममुद्रा अहम हैं। मुकुलमुद्रा, महर्षिमुद्रा, योनीमुद्रा, पुशनमुद्रा, कालेश्वरमुद्रा व गूढ़मुद्रा काफी उपयोगी हैं। बतखमुद्रा, कमलमुद्रा, योग मुद्रा, विषहरणमुद्रा, आकाशमुद्रा, हृदयमुद्रा, जालमुद्रा व पाचनमुद्रा भी काफी उपयोगी हैं।
मुद्राओं के लाभ
योग मुद्राओं के अनगिनत लाभ में कुंडलिनी जाग्रत भी अहम है। इसे करने के लिए मुद्राओं का अभ्यास उपयोगी होता है। कुछ मुद्राओं से आरोग्य और दीर्घायु प्राप्त की जा सकती है। इससे अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति संभव है। यह संपूर्ण योग का सार स्वरूप है।
साभार : राजीव रंजन ठाकुर