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क्या आप जानते हैं ? अयोध्या के श्रीराम मंदिर का इतिहास, ऐसा रहा 1528 से 2024 तक का सफरनामा

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Do you know ? History of Shri Ram Temple of Ayodhya, this has been the journey from 1528 to 2024, dharm, religious, Dharma- Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, dharm adhyatm : पुरुषोत्तम श्रीराम की नगरी अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। अब यहां राम भक्तों का रेला लगा हुआ है। रामलाल को रोज करोड़ों में चढ़ावा भी मिल रहा है। आज हम आपको राम मंदिर का इतिहास, बाबरी विवाद, विध्वंस व इसके निर्माण के बारे में विस्तृत जानकारी देने जा रहे हैं। 

वर्तमान समय में अयोध्या में जो भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो चुका है। मंदिर निर्माण के पीछे कई शताब्दियों तक चली लंबी कानूनी लड़ाई और मुगल आक्रांताओं से संघर्ष की लंबी कहानी रही है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का सफर बहुत मुश्किल भरा रहा है। अयोध्या के राम मंदिर के लिए न सिर्फ अदालतों में लंबी लड़ाई चली, बल्कि कई लोगों ने अपनी जान भी गंवाई। आज हम आपको राम मंदिर का इतिहास, बाबरी विवाद, विध्वंस और निर्माण के बारे में बताने जा रहे हैं।

साल 1526 में मुगल शासक बाबर भारत आया

साल 1526 में मुगल शासक बाबर भारत आया था। भारत आने के दो साल बाद बाबर के सूबेदार मीराबाकी ने अयोध्या में एक मस्जिद का निर्माण करवाया। बताया जाता है कि मस्जिद का निर्माण उस स्थान पर हुआ। जहां पर प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ हुआ था। मीर बाकी ने मुगल शासक बाबर के सम्मान में इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा। इस दौरान पूरे देश में मुगल शासन फैल रहा था। साल 1528 से 1853 तक यानी की मुगलों और नवाबों के शासन के दौरान हिंदू इस मामले को लेकर मुखर नहीं हो सके। 

19वीं सदी में नवाबों और मुगलों का शासन कमजोर पड़े

जब 19वीं सदी में नवाबों और मुगलों का शासन कमजोर पड़ा, तो अंग्रेजी शासन प्रभावी हो गई। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान हिंदुओं ने यह मामला उठाया। हिंदुओं की तरफ से कहा गया कि मस्जिद का निर्माण भगवान राम के जन्मस्थान मंदिर को तोड़कर किया गया। जिसके बाद से रामलला के जन्मस्थल को वापस पाने की यह लड़ाई चलने लगी। बाबर शासक के सूबेदार मीरबाकी द्वारा मस्जिद निर्माण के 330 साल बाद साल 1858 में इसकी कानूनी लड़ाई शुरू हुई। उस दौरान पहली बार परिसर में पूजा-हवन करने पर FIR दर्ज की गई। पहले कानूनी दस्तावेज के मुताबिक परिसर के अंदर राम के प्रतीक होने के प्रमाण हैं। इसके सामने आने के बाद  तारों की एक बाड़ खड़ी कर विवादित भूमि के बाहर और अंदर मुस्लिमों व हिंदुओं को अलग-अलग पूजा व नमाज पढ़ने की इजाजत दे दी गई।

साल 1885 कोर्ट पहुंचा रामजन्मभूमि का मुद्दा

साल 1858 की घटना के करीब 27 सालों तक साल 1885 में राम जन्मभूमि की लड़ाई कोर्ट पहुंची। इस दौरान निर्मोही अखाड़े के मंहत रघुबर दास ने फैजाबाद के कोर्ट में रामजन्म भूमि के स्वामित्व को लेकर केस फाइल किया। रघुबर दास ने कोर्ट से बाबरी ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर बने अस्थाई मंदिर को पक्का बनाए जाने और छत डालने की मांग की। तब जज ने फैसला सुनाया कि वहां पर हिंदुओं को पूजा-पाठ का अधिकार है। लेकिन वह जिलाधिकारी के फैसले के खिलाफ मंदिर को पक्का करने व छत डालने की अनुमति नहीं दे सकते।

आजादी के 2 साल बाद तेज हुई राम मंदिर की मुहिम

देश के आजाद होने के 2 साल बाद साल 1949 में मस्जिद ढांचे के गुंबद के नीचे राम मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ। तब 16 जनवरी 1950 को हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह विशारद ने पहला मुकदमा दायर किया। जिसमें विशारद ने ढांचे के मुख्य गुंबद के नीचे मिली भगवान की मूर्तियों के पूजा-पाठ की मांग की। फिर करीब 11 महीने बाद महंत रामचंद्र परमहंस ने सिविल जज के यहां ऐसी मांग करते हुए मुकदमा दायर किया। तो वहीं दूसरे पक्ष को वहां पर पूजा-अर्चना में बाधा डालने से रोकने की मांग की गई। वहीं साल 1951 में कोर्ट ने गोपाल सिंह विशारद मामले में मुस्लिम पक्ष को पूजा-अर्चना में बाधा न डालने की हिदायत दी।

बता दें कि मुकदमों की कड़ी में 18 दिसंबर 1961 को उत्तर प्रदेश के केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने एक मुकदमा दायर किया। जिसमें यह मांग की गई कि ढांचा हिंदुओं से लेकर मुसलमानों को सौंपा जाए। साथ ही वहां से मूर्तियों को भी हटाया जाए। 

मस्जिदों के निर्माण के खिलाफ अभियान

वहीं साल 1982 में राम, कृष्ण और शिव के स्थलों पर मस्जिदों के निर्माण को विश्व हिंदू परिषद ने साजिश करार दिया और इनकी मुक्ति के लिए अभियान चलाने का ऐलान किया। जिसके बाद 1984 में संत-महात्माओं, हिंदू नेताओं ने दिल्ली में अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की मुक्ति और ताला खुलवाने को आंदोलन का फैसला किया। साल 1989 में कुंभ मेले के दौरान मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव शिला पूजन कराने का फैसला लिया गया। जिसक बाद साल 1989 में श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की गई। काफी विवाद और खींचतान के बाद देश के तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने शिलान्या की इजाजत दे दी गई।

आडवाणी की रथ यात्रा से मिली आंदोलन की धार

राम मंदिर को लेकर आंदोलन तेज हो रहा था। तभी इसी दौरान लाल कृष्ण आडवाणी की तरफ से निकाली गई रथ यात्रा ने राम मंदिर आंदोलन एक अलग धार दी। इस दौरान देश की राजधानी की दशा और दिशा दोनों ही बदल रही थी। आडवाणी रथ यात्रा के लिए गिरफ्तार हो गए वहीं सत्ता में परिवर्तन हो गया। बीजेपी के समर्थन से बनी जनता दल की सरकार गिर गई। जिसके बाद कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर पीएम बनें। लेकिन यह सरकार भी ज्यादा समय सत्ता में नहीं रह सकी। नए सिरे से चुनाव होने के बाद एक बार फिर केंद्र में कांग्रेस की सरकार आई। 

राम मंदिर के लिए ऐतिहासिक तारीख

इसके बाद वह ऐतिहासिक तारीख 6 दिसंबर 1992 का दिन आया तक हजारों की संख्या में अयोध्या पहुंचे कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। उसी दिन उसी स्थान पर शाम को अस्थाई मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना शुरूकर दी गई। इस दौरान देश के तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने राज्य की कल्याण सिंह सरकार सहित अन्य राज्यों की बीजेपी सरकार को बर्खास्त कर दिया। जिसके कारण उत्तर प्रदेश समेत देश के अलग-अलग जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा हुई। जिसमें अनेको लोगों ने जान गंवाई। विवादित ढांचा विध्वंस मामले में बीजेपी के कई नेताओं समेत हजारों लोगों पर केस दर्ज किया गया। 

राम भोग की अनुमति

स्थानीय अधिवक्ता उमेश पाण्डेय की अर्जी पर एक फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पाण्डेय ने इस स्थल का ताला खोलने का आदेश दे दिया। इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में दायर अपील खारिज हो गई। वहीं केंद्र सरकार ने 7 जनवरी 1993 को ढांचे वाले स्थान और कल्याण सिंह सरकार द्वारा न्यास को दी गई भूमि सहित कुल 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया। 

साल 2002 में मालिकाना हक पर हुई सुनवाई

उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने अप्रैल 2002 में विवादित स्थल का मालिकाना हक तय करने के लिए सुनवाई शुरू हुई। साल 2003 में उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संबंधित स्थल पर खुदाई का निर्देश दिया। इस आदेश के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायालय को 22 अगस्त  2003 को रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में संबंधित स्थल पर जमीन के नीचे एक विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा (मंदिर) होने का दावा किया गया।

साल 2010 में आया ऐतिहासिक फैसला

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 30 सितंबर 2010 को इस स्थल को तीन पक्षों में बांटने का आदेश दिया। इन तीन पक्षों में निर्मोही अखाड़ा, श्रीराम लला विराजमान और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया। इस दौरान न्यायधीशों ने गुंबद वाले स्थान को जन्मस्थान माना। इसके बाद मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा। इस दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने 21 मार्च 2017 को मध्यस्थता से मामले सुलझाने की पेशकश की।

मंदिर निर्माण का रास्ता हुआ साफ

सर्वोच्च न्यायालय ने 06 अगस्त 2019 को रोजाना सुनवाई करना शुरू की। वहीं साल 2019 में यह सुनवाई पूरी हुई और कोर्ट ने अपने पास फैसला सुरक्षित रख लिया। 9 नवंबर 2019 को 134 सालों लंबी चली लड़ाई के अंतिम फैसले का समय था। इस दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना और 2.77 एकड़ भूमि रामलला के स्वामित्व की मानी। इसी के साथ निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया गया। वहीं कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से मस्जिद बनाने के लिए यूपी सरकार को 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर उपलब्ध कराए।

मंदिर की आधारशिला और प्राण-प्रतिष्ठा

कोर्ट के इसी फैसले के साथ ही दशकों से चली आ रही लंबी कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई। 5 फरवरी 2020 को पीएम मोदी ने मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या में राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की। इसके 6 महीने बाद 5 अगस्त 2020 को अयोध्या राम मंदिर की आधारशिला रखी गई। वहीं अब 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद सभी श्रद्धालुओं के लिए मंदिर खोल दिया गया है। अब यहां दिन रात भक्तों का मेला लगा रहता है।

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