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Jharkhand: मुझे इस बात का गर्व है कि मैं आदिवासी मुख्यमंत्री हूं, आदिवासी महोत्सव के माध्यम से आदिवासी पहचान को बढ़ा रहे हैं आगे : हेमन्त सोरेन 

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मुख्यमंत्री दो दिवसीय झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में हुए शामिल, आदिवासी महोत्सव में आदिवासियत : एक जीवन शैली परिचर्चा में मुख्यमंत्री ने रखे अपने विचार

Aadivasi mahotsav ka samapan,Jharkhand news, Jharkhand update, Ranchi news, Ranchi update  : मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक आदिवासी मुख्यमंत्री हूं। आज देश की सवा सौ करोड़ की आबादी में13 करोड़ आदिवासी हैं। इन आदिवासियों की आईडेंटिटी बरकरार रखने के लिए मैं प्रतिबद्ध हूं। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने गुरुवार को झारखंड आदिवासी महोत्सव – 2023 के समापन समारोह के अवसर पर  ‘आउटलुक’ पत्रिका के साथ  “अदिवासियत : एक  जीवन शैली”  को लेकर आयोजित परिचर्चा में अपने विचार रखे। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार सभी आदिवासी समुदायों को कनेक्ट करने का प्रयास कर रही है। इन्हें विकास से जोड़ा जा रहा है। सरकार ने ऐसे कई निर्णय लिये हैं, जिनसे आदिवासियों को एक अलग आईडेंटिटी मिल रही है।

 ट्राइबल आइडेंटिटी की तलाश अभी भी जारी

ट्राइबल आइडेंटिटी क्या है ? इस सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि ट्राइबल आइडेंटिटी की तलाश अभी भी जारी है। झारखंड राज्य की उत्पत्ति भी ट्राइबल आइडेंटिटी के साथ हुई है। लेकिन, आज भी ये अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं। एकीकृत बिहार और अलग झारखंड राज्य बनने के बाद कभी भी आदिवासी महोत्सव का आयोजन नहीं हुआ। लेकिन, हमारी सरकार पिछले दो वर्षों से आदिवासी महोत्सव का आयोजन कर रही है। इसका मकसद आदिवासी पहचान को आगे बढ़ाना है। देश की सवा सौ की आबादी में 13 करोड़ आदिवासियों की पहचान मिटाने की साजिश चल रही है। लेकिन, हम ऐसा नहीं होने देंगे। आदिवासियों की आदिकाल से अलग पहचान रही है और आगे भी बनी रहेगी।

सरना अलग धर्म कोड के लिए संघर्ष जारी रहेगा

अलग सरना कोड से आदिवासियों को क्या हासिल होगा?  इस प्रश्न के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि देश में जो आदिवासी समुदाय रहते हैं, उन्हें कुछ तो अलग पहचान मिलनी चाहिए। इतिहास में जो आदिवासियों की अलग जगह है, उसे क्यों समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है?  इस पर हमें गम्भीर मंथन करने की जरूरत है। अगर आदिवासियों को अलग पहचान दिलानी है, तो उनके लिए कुछ तो अलग व्यवस्था होनी चाहिए। इसी कड़ी में हमारी सरकार ने सरना अलग धर्मकोड का प्रस्ताव विधानसभा से पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा है। जिस तरह आदिवासी अपने वजूद के लिए लम्बा संघर्ष करते रहे हैं। आगे भी आदिवासी सरना अलग धर्म कोड  के लिए भी लम्बा संघर्ष करने के लिए तैयार हैं। इसमें झारखण्ड के आदिवासी सबसे अहम भूमिका निभा रहे हैं।

 जनरेशन- टू- जनरेशन संघर्ष करने की मिली है प्रेरणा

आपके दादाजी और पिताजी शोषण के खिलाफ लम्बा संघर्ष किये हैं। आप आज सक्रिय राजनीति में हैं। आप पर आपके परिजनों का कितना प्रभाव दिखता है ? इस सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड की धरती से भगवान बिरसा मुंडा और सिदो कान्हू जैसे वीर शहीद पैदा हुए हैं, जिन्होंने अंग्रेजों और महाजनों के शोषण तथा जुल्म के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अपने को बलिदान कर दिया। मेरे दादा जी और पिताजी इस कड़ी में लम्बा संघर्ष किये हैं। मैं यह कह सकता हूं कि शोषण और जुल्म के खिलाफ उनके संघर्ष ने मेरे लिए प्रेरणा का काम किया है और जनरेशन-टू-जनरेशन यह मुझे विरासत में मिला है। 

जल, जंगल और जमीन आदिवासियों की पहचान 

आदिवासी को लेकर कंट्रोवर्सी पर पूछे गये सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासियों के लिए केन्द्र और राज्य सरकार के अलग मंत्रालय और विभाग  हैं। लेकिन, आदिवासियों के नाम पर कॉन्ट्रोवर्सी पैदा हो रही है। कभी इन्हें वनवासी  कहा जाता है, तो कभी कुछ और। मेरा मानना है कि आदिवासी जल, जंगल व जमीन से जुड़े हैं और यही उनकी पहचान भी है।

आदिवासियों को विकास से जोड़ कर बढ़ा रहे हैं आगे

आदिवासी महोत्सव आयोजित करने के पीछे की क्या सोच है और आदिवासियों के विकास और पहचान के साथ राज्य कैसे आगे बढ़ेगा?  इस प्रश्न पर मुख्यमंत्री ने कहा कि देश का सबसे ज्यादा खनिज झारखंड में मिलता है। देशभर के इंडस्ट्रीज झारखंड के खनिजों से चलती हैं, लेकिन फिर भी यह राज्य पिछड़ा और यहां के लोग गरीब हैं। जब हमारी सरकार बनी, तो हमने इस पर गम्भीरता से विचार किया, तो पता चला कि यहां के आदिवासियों की पहचान को मिटाने का प्रयास किया जा रहा है। यह कहीं ना कहीं आदिवासी के साथ-साथ काफी विचित्र स्थिति थी। ऐसे में हमारी सरकार ने आदिवासियों को विकास से जोड़ कर और उन्हें आगे बढ़ाने का प्रयास किया है। इस दिशा में हमने कई ऐसे निर्णय लिये हैं, जो काफी सालों पहले लागू हो जाने चाहिए थे, लेकिन दुर्भाग्य से लागू नहीं हो सके।   

पर्यावरण संरक्षण को लेकर सरकार प्रतिबद्ध

आदिवासियों की पहचान को बरकरार रखते हुए जल- जंगल-जमीन और विकास के बीच कैसे संतुलन स्थापित करेंगे ? सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर आज बड़ी-बड़ी संस्थाएं काम कर रही हैं। बड़े-बड़े होटलों में सेमिनार, संगोष्ठी और कार्यशाला जैसे कई कार्यक्रम होते हैं। लेकिन, क्लाइमेट चेंज पर लगाम नहीं लग रही है। आखिर ऐसा क्यों?  मेरा मानना है कि जो नीति निर्धारक होते हैं, वे क्लाइमेट चेंज को लेकर बहस तो करते हैं, लेकिन जब नीति निर्धारण की बारी आती है, तो नियंत्रण करने के बजाय इसे बिगाड़ देते हैं। दूसरी ओर, आदिवासियों का जल, जंगल और जमीन से गहरा नाता है। हमारी सरकार क्लाइमेट चेंज को नियंत्रित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस दिशा में सरकार अपने आवासीय परिसर में एक पेड़ लगानेवालों को 05 यूनिट बिजली फ्री दे रही है। इसी तरह के और भी कई निर्णय लिये गये हैं। मैं कह सकता हूं कि जल, जंगल और जमीन के साथ समन्वय बना कर विकास को हम आगे बढ़ा रहे हैं।

दो दिवसीय महोत्सव में इनकी रही उपस्थित

इस महोत्सव के समापन समारोह में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की धर्मपत्नी कल्पना सोरेन, मंत्री आलमगीर आलम, मंत्री चम्पाई सोरेन, मंत्री जोबा माझी, मंत्री बादल पत्रलेख, मंत्री हफीजुल हसन, पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय,  मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, पुलिस महानिदेशक अजय कुमार सिंह, प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का, मुख्यमंत्री की प्रधान सचिव वंदना दादेल  और मुख्यमंत्री के सचिव विनय कुमार चौबे समेत कई गण्यमान्य लोग मौजूद रहे।

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