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जीवन में पिता की भूमिका : इंसान क्या जिसमें स्वाभिमान नहीं, गीत क्या जिसमें तान नहीं

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समुद्र ममता का गहराई ना छू पाया।

हजारों चांद लिखे तुलसी की चौपाई न छू पाया।।

इंसान क्या जिसमें स्वाभिमान नहीं है।

वो गीत क्या जिसमें तान नहीं है।।

मंदिर की मूर्तियों से दुआ मांगने वालों l

मां बाप से बढ़कर कोई भगवान नहीं है l।

उसी का अंश हैं हम, उसी से अपना नाता है।

उसी की परवरिश से जीवन अपना सांसें पाता है।

बचपन में हमें अपने कंधे पर बैठाता है।

वही अंगुली पकड़ कर हमें चलना सिखाता है।

हमारे वास्ते जो अपना सब दुख भूल जाता है।

पिता कहते हैं जिनको वही अपना विधाता है।

पिता उपवास करके अपने बच्चों को खिलाते हैं।

पिता बच्चो के सुख में अपना सब दुख भूल जाते हैं।

पिता अपनी गोद में बच्चों को मेला घुमाते हैं।

पिता बच्चो के सपनों को भी इस दुनिया में लाते हैं।

पिता का नाम तो ता जिंदगी काम आता है।

पिता कहते हैं जिनको वही तो अपना विधाता है।

फलक से चांद सूरज तारे कौन देता है।

मुसीबत से निकलने के इशारे कौन देता है।

कदम जब डगमगाते हैं सहारा कौन देता है।

मोहब्बत के नदी के धारे हमको कौन देता है।

पिता का नाम ही हर जेहन में क्यों जगमगाता है।

पिता कहते हैं जिनको वही तो अपना विधाता है।

एक ऐसी रोशनी जो उम्र भर झिलमिलाती रहती है।

पिता की सीख तो अंतिम में भी काम आती है।

पिता वह सय है जिससे हर मुसीबत हार जाती है।

सारे रिश्ते हैं मतलब के पिता ही सच्चा साथी है।

नहीं धन्य है जो चरणों में उनके सर झुकाता है।

पिता कहते हैं जिनको वही तो अपना विधाता है।

उन्हीं के पद चिन्हों पर चलकर सफर आसान हो जाए।

जवानी और दुनिया में एक पहचान हो जाए।

पिता क्या है जिसे भी इसका थोड़ा ज्ञान हो जाए।

फिर उसे इंसान की जिंदगी वरदान हो जाए।

हमारी जिंदगी को जो हर पल फूलों से सजाता है।

पिता कहते हैं जिनको वही अपना विधाता है

पिता के दम से ही मां के हर सिंगार होते हैं।

कभी फूलों से लगते हैं कभी तलवार होते हैं।

पिता के हाथों ही रिश्तो के बंधन होते हैं।

हमारी हर कहानी के पिता किरदार होते हैं।

पिता का साया सर पर हो तो हर मौसम सुहाता है।

पिता कहते हैं जिनको वही तो अपना विधाता है।

पिता के शक्ति पर चलता ना कोई जादू टोना।

पिता की सीख होती है, मुसीबत में मत रोना।

पिता कहते हैं संकट में कभी साहस मत खोना।

पिता पीतल की दुनिया में होते हैं खरा सोना।

अंधेरे में पिता उम्मीद का किरण उगाता है।

पिता कहते हैं, जिनको वही अपना विधाता है।

पिता हो तो कभी छूने नहीं पाती कोई मुश्किल।

पिता हो तो बन जाता है अकेलापन भी एक महफिल।

पिता है आत्मा जो इस बदन में जान लाता है।

पिता कहते हैं जिनको वही अपना विधाता है।

पिता बन जाओगे जब उनके सुख-दुख जान जाओगे।

पिता के दर्द की पीड़ा को तुम पहचान जाओगे।

कभी उनकी तरह खेत और खलिहान जाओगे।

पिता फौलाद के चट्टान थे यह मान जाओगे।

पिता मुश्किल घड़ी में हंसता है और सबको हंसाता है।

पिता कहते हैं जिनको वही अपना विधाता है।

अभागे हैं वे बेटे जो पिता को छोड़ देते हैं।

घुटन में जीते हैं ताजी हवा को छोड़ देते हैं।

निकलती है जो दिल से दुआ उस दुआ को छोड़ देते हैं।

समझ लीजिए वह अपने भगवान या खुदा को छोड़ देते हैं।

पिता सेवक पिता मालिक पिता सबका दाता है।

पिता कहते हैं हम जिसको वही तो अपना विधाता है वही तो अपना विधाता है,,,,,

रचयिता डीएन मणि 

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