Dharma-Karma, religious, God and goddess Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, vastu Shastra, dharm adhyatm, Sanatan Dharm, hindu dharma : पवन पुत्र हनुमान रामायण काल के पहले भी थे, रामायण काल में तो थे ही। वे महाभारत काल में भी थे और भारतीय आस्था परंपरा में आज भी वह हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है। हनुमान जी के भक्तों की यह आत्मिक अभिलाषा होती है कि अगर उनके भगवान हनुमान आज भी कहीं हैं, तो कहां हैं और उनके दर्शन कैसे किए जा सकते हैं। कई पौराणिक कहानियों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि कलियुग में हनुमान जी सशरीर गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। यह क्षेत्र वर्तमान में तिब्बत में है। कलियुग में भी कुछ महान लोगों को हनुमान जी के दर्शन पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इनमें गोस्वामी तुलसीदास जी, समर्थ रामदास जी, भक्त माधव दास, नीम करोली बाबा, राघवेंद्र स्वामी सहित कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें हनुमान जी के साक्षात दर्शन हुए हैं।
हनुमान को प्राप्त है अमरता का वरदान
कई पौराणिक ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि हनुमान जी अभी भी इस संसार में उपस्थित हैं, क्योंकि उन्हें चिरंजीवी यानी अमरता का वरदान प्राप्त है। हनुमान जी आज भी उस जगह पर जरूर आते हैं, जहां पर रामकथा की जाती है। जहां भी प्रभु श्रीराम की स्तुति की जाती है, वहां हनुमान जी किसी न किसी रूप में अपने भक्तों को दर्शन देने पहुंच जाते हैं। हनुमान जी की कृपा पाने के लिए प्रभु श्रीराम का स्मरण जरूर करना चाहिए।
अतिशय बलशाली ही नहीं, दयालु भी हैं हनुमान
हम सब जानते हैं कि दिव्या बल बुद्धि और ज्ञान के प्रतीक हनुमान जी प्रभु श्रीराम के परम भक्त हैं। वह बलशाली ही नहीं, बल्कि दयालु भी हैं। हनुमान जी इतने दयालु हैं कि अपने शत्रुओं पर भी दया करके उन्हें संकट से निकाल देते हैं। इसका अर्थ यह है कि हनुमान जी केवल एक देवता ही नहीं बल्कि एक योद्धा भी हैं। ज्ञान, बल, पराक्रम के साथ एक योद्धा में दयाभाव का होना ही उसे महान बनाता है। कई पौराणिक कहानियों में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि हनुमान जी कलियुग के संकटों को पार करने में हर उस मनुष्य की सहायता करते हैं, जो भी हनुमान जी का स्मरण पूरी श्रद्धा के साथ करता है।
द्वापर में भीम से मिले थे हनुमान
रामायण की कथा के अनुसार गंधमादन पर्वत से जुड़ीं कई कहानियां मिलती हैं। गंधमादन पर्वत के क्षेत्र को यक्षलोक भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां एक अद्भुत सरोवर है जहां खिलने वाले कमलों को रोजाना हनुमान अपने आराध्य श्रीराम की पूजा में अर्पित करते हैं। श्रीमद्भावत में वर्णन मिलता है कि द्वापर युग में भी हनुमान जी गंधमादन पर्वत पर निवास करते थे। इसी क्षेत्र में हनुमान जी भीम से मिले थे। अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन पर्वत के क्षेत्र में पहुंचे। इसी दौरान एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंच गए थे, जहां पर हनुमान जी ने भीम का अंहकार तोड़ा था।
कलयुग में गंधमादन पर्वत को बनाया निवास
श्रीमद्भावत कथा के अनुसार हनुमान जी त्रेतायुग में भी थे और द्वापर युग में भी कई वर्षों तक इस जगह पर विचरण किया करते थे। कलियुग के आगमन के समय हनुमान जी ने गंधमादन पर्वत पर ही निवास कर लिया। गंधमादन पर्वत हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में स्थित है। प्राचीन काल में सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक पर्वत को गंधमादन पर्वत कहा जाता था। यहां पर महर्षि कश्यप ने तपस्या की थी। कभी यह जगह सुंगधित वर्तमान समय में यह क्षेत्र तिब्बत क्षेत्र में स्थित है।
*गंधमादन पर्वत पर बना हुआ है हनुमान जी का मंदिर*
गंधमादन पर्वत से जुड़ी पौराणिक मान्यता है कि रामायण काल में हनुमान जी अपने वानर मित्रों के साथ यहीं पर बैठकर युद्ध की रणनीति बनाया करते थे। वर्तमान में गंधमादन पर्वत पर हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है। जहां पर श्रीराम की प्रतिमा भी हनुमान जी के साथ विराजमान है। मान्यता है कि हनुमान जी अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए इस पर्वत पर रूप बदलकर आते हैं। इस पर्वत पर भगवान राम के पैरों के निशान भी हैं।