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ज्ञानवापी का सच, क्या कहता है इतिहास : अग्निपुराण, मत्स्यपुराण और  ब्रह्मवैवर्त पुराण में है ज्ञानवापी कुंए का जिक्र, भगवान भोले शंकर ने स्वयं त्रिशूल चलाकर निकाला था पानी

ज्ञानवापी का सच, क्या कहता है इतिहास : अग्निपुराण, मत्स्यपुराण और  ब्रह्मवैवर्त पुराण में है ज्ञानवापी कुंए का जिक्र, भगवान भोले शंकर ने स्वयं त्रिशूल चलाकर निकाला था पानी

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ज्ञानवापी मामले की गूंज देश से लेकर विदेशों में भी सुनाई दे रही है। दोनों पक्ष अपने अपने दावे और प्रति दावे कर रहे हैं। फिलहाल यह मामला अदालत में है। इसकी सुनवाई अब तेजी से हो रही है। मामले में हर दिन कुछ न कुछ नया हो रहा है। जानकारों का मानना है कि वेद पुराणों में भी ज्ञानवापी कुए का जिक्र है। ज्ञानवापी मामले में कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद में कमीशन की कार्यवाही में अन्तिम दिन शिवलिंग मिलने के दावे के बाद भारत सहित दुनिया भर में रहने वाले सनातन धर्मियों और उनके वंशजों की निगाहें अब इस पर टिक गई हैं। लोग न्यायालय में पेश होने वाले कमीशन की कार्यवाही की रिपोर्ट जानने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

ज्ञानवापी मस्जिद और श्री काशी विश्वनाथ दरबार से जुड़े नए-नए तथ्य रोज हो रहे उजागर

वाराणसी में मौजूद ज्ञानवापी मस्जिद और श्री काशी विश्वनाथ दरबार से जुड़े तथ्य और फोटोग्राफ लगातार सामने आ रहे हैं। प्रतिदिन नई-नई जानकारियां सामने आ रही हैं। काशी में नियमित ओम नम: शिवाय प्रभात फेरी निकालने वाले शिवाराधना समिति के डॉ मृदुल मिश्र बताते हैं कि ज्ञानवापी कुंए का जिक्र तो ब्रह्मवैवर्त पुराण, अग्निपुराण, मत्स्यपुराण में भी है। काशी अविमुक्त क्षेत्र में अनादि काल से भगवान शिव और माता पार्वती वास करते हैं। पुराणों में यह भी लिखा है कि जब धरती पर गंगा अवतरित नहीं हुई थी तो मानव पानी के लिए परेशान था, तब भगवान शिव ने स्वयं अपने अभिषेक के लिए त्रिशूल चलाकर यहां से जल निकाला। इस वजह से नाम ज्ञानवापी पड़ा और जहां से जल निकला उसे ज्ञानवापी कुंड कहा गया। यहीं काशीपुराधिपति ने माता पार्वती को ज्ञान दिया था।

पहले काशी विश्वनाथ में अविमुक्तेश्वर के स्वयं प्रकट हुए शिवलिंग की पूजा होती थी

मामले को लेकर डॉ मृदुल मिश्र बताते हैं कि काशी में अविमुक्तेश्वर के स्वयं प्रकट हुए शिवलिंग की पूजा होती थी। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानकूप के उत्तर तरफ स्थित है। उन्होंने काश्यांमरणान्मुक्ति: का उल्लेख कर कहा कि काशी-क्षेत्र की सीमा निर्धारित करने के लिए पुराकाल में पंचक्रोशीमार्ग का निर्माण किया गया। जिस वर्ष अधिमास (अधिक मास) लगता है, उस वर्ष इस महीने में पंचक्रोशी यात्रा की जाती है। पंचक्रोशी (पंचकोसी) यात्रा कर श्रद्धालु ज्ञानवापी कूप पर ही अपना संकल्प छुड़ाते रहे हैं। ऐसे में मस्जिद का नाम ज्ञानवापी कैसे हो सकता है।

18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था

इस मामले में उन्होंने इतिहास में लिखे तथ्यों का उल्लेख कर बताया कि 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है। बनारस में तोड़े गये चार मंदिरों के अवशेष पर मस्जिदों का निर्माण हुआ। जिसमें प्रमुख आदि विश्वेश्वर मंदिर के ध्वंस इलाके में मस्जिद बनी उसे ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। इसी तरह बिंदुमाधव मंदिर के स्थान पर धरहरा मस्जिद बनी। उन्होंने कहा कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमले का इतिहासकारों ने भी जिक्र किया है। कई शोध में भी सामने आया है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ही ज्ञानवापी मस्जिद बना। उन्होंने कहा कि नंदी सदैव शिवलिंग की तरफ ही देखते है। लेकिन यहां वे मस्जिद की तरफ क्यों देख रहे है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर तो उनके पीछे हैं।

26 नवंबर 1820 को हुई जनगणना में वारा वाराणसी शहर में 800 शिवालय और 300 मस्जिदें थीं

गौरतलब है कि 26 नवबर 1820 को ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसर जेम्स प्रिंसेप बनारस आए थे। उन्होंने बनारस की पहली जनगणना करवाई थी। तब यहां 369 मुहल्ले, 30205 मकान और कुल 181482 आबादी थी। तब शहर में 800 शिवालय और 300 मस्जिदें थी। उन्होंने बनारस में स्मारकों की एक श्रृंखला को भी चित्रित किया था। जेम्स प्रिंसेप ने ज्ञानवापी मस्जिद की जो तस्वीर चित्रित किया था, उसमें विश्वेश्वर मंदिर के उस हिस्से को दिखाया गया। इसमें मस्जिद का बड़ा गुंबद और उसके बाहरी छोर पर टूटे हुए हिस्से में बैठे लोग दिख रहे हैं। टूट चुके इस हिस्से की दीवार अब ज्ञानवापी मस्जिद में खड़ी है। लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी में रखा काशी विश्वनाथ मंदिर का ये नक्शा भी जेम्स प्रिंसेप ने बनाया था। इस नक्शे में काशी विश्वेश्वर मन्दिर के गर्भगृह को बीचो बीच दिखाया गया है। इस पर अंग्रेजी में महादेव लिखा गया है। इसके चारों तरफ दूसरे मन्दिर बने हैं। एक अन्य पुराने चित्र में ज्ञानवापी कुंड के सामने स्थापित नंदी की मूर्ति और उसके ठीक बगल में बने मंदिर में बैठे पुजारी को दिखाया गया है।

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